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आईटी छापे: तापसी पन्नू और अनुराग कश्यप को मिल रही है किसानों के समर्थन करने की सजा

शिशु विभाग (आईटी) ने बॉलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू और फिल्मकार अनुराग कश्यप सहित अन्य फिल्मी हस्तियों से जुड़े परिसरों पर छापेमारी की है। ऐसे में शिवसेना के मुखपत्र सामना में इस मुद्दे को लेकर लेख लिखा गया है। सामना में कहा गया है कि तासपी और अनुराग केंद्र सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं इसलिए उनके साथ ऐसा हो रहा है।यहां पढ़िए सामना का पूरा लेख: देश की राजनीतिक तस्वीर साफ होती जा रही है, अधिक गड़बड़ाती जा रही है। या पेचीदा होता जा रहा है? केंद्र सरकार के खिलाफ बोलना देशद्रोह नहीं है, ऐसा मत सर्वोच्च न्यायालय ने रखा और उसी दौरान मोदी सरकार के खिलाफ बोलनेवाले कार्यकर्ता और सिनेतार के निर्माता-निर्देशकों पर ‘इंकम टैक्स’ के छापे पड़ने लगे हैं। इनमें तापसी पन्नू, अनुराग कश्यप, विकास बहल और डेवलपर मधु मंटेना का नाम प्रमुख है। मुंबई-पुणे में ३० से ज्यादा ठिकानों पर छापे मारे गए। तापसी पन्नू और अनुराग कश्यप खुलकर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। सिसल इसलिए पैदा होता है कि हिंदी वाक्य जगत का व्यवहार और काम-धाम स्वच्छ और पारदर्शी है, अपवाद केवल तपसी और अनुराग कश्यप का है। सिनेटर की कई महान उत्सव मूर्तियों में किसान आंदोलन के संदर्भ में ग्राफिक भूमिका अपनाई गई। उन्होंने किसानों को समर्थन तो नहीं दिया, उल्टे दुनिया भर से जो लोग किसानों को समर्थन दे रहे थे, उनके बारे में इन उत्सव मूर्तियों में कहा गया कि यह हमारे देश में हस्तक्षेपलंदाजी है। लेकिन तापसी और अनुराग कश्यप जैसे गिने-चुने लोग किसान आंदोलन के पक्ष में खड़े रहे। उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है ।२०११ में किए गए एक लेन-देन के संदर्भ में ये छापे पड़े हैं। इन लोगों ने एक ‘प्रोडक्शन हाउस’ बनाया और उसके टैक्स से संबंधित यह मामला है। जिस हिसाब से इंकम टैक्स ने छापे मारे हैं, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि कहीं कुछ झटका तो है ही। लेकिन छापे मारने के लिए या कार्रवाई करने के लिए सिर्फ इन्हीं लोगों को क्यों चुना गया? आपके बारे में ‘बॉलीवुड’ में रोज जो करोड़ों रुपए उड़ रहे हैं, वो क्या गंगाजल के प्रवाह से आ गए हैं? लेकिन कहीं-कहीं-कहीं फंसने पर सरकार के इशारों पर नाचना और बोलना होता है। इनमें कुछ लोग स्वाभिमानी और अलग ही मिट्टी के बने होते हैं। ‘बॉलीवुड’ में लॉकडाउन काल में कई मुश्किलें हैं। फिल्मांकन और नए निर्माण बंद हैं। शराब बंद हैं। एक बड़ा उद्योग-व्यवसाय जब आर्थिक संकट में पड़ा, ऐसे में राजनीतिक बदले लेने के लिए ऐसे हमले करना ठीक नहीं है। सिंटार में मोदी सरकार की खुलकर चमचागीरी करनेवाले कई लोग हैं। उनमें कई लोग तो मोदी सरकार के सीधे लाभार्थी हैं। वे सभी व्यवहार और लेन-देन धुले हुए चावल की तरह साफ हैं क्या? भाजपा और केंद्र सरकार की नीति पर टिप्पणी करने के कारण कार्रवाई होने के आरोप को सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने खारिज कर दिया। आश्री जावडेकर ने ‘दिव्य’ जानकारी दी है कि जांच एजेंसियों के पास जो पक्की खबर आती है उसी के आधार पर पर कार्रवाई की जाती है। मतलब बॉलीवुड के भले-बुरे धंधे मानो सारे देशवासियों को मालूम ही नहीं था, केंद्रीय मंत्री का ऐसा कहना क्या है? जांच एजेंसियों के पास तीन-चार लोगों के बारे में अच्छी-खासी जानकारी है। सब लोग सत्ताधारियों की पालकी ढोनेवाले होंगे ये जरूरी नहीं है। कुछ लोगों की रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और समय आने पर वे बता भी देते हैं और वे पर्दे पर जिस तरह की कन्फर्म भूमिका अदा करते हैं, वैसा ही मूल रूप से जीवन में भी जीने का प्रयास करते हैं। ‘पिंक’, ‘थप्पड़’ और ‘बदल’ जैसी फिल्मों में तापसी का जोरदार अभिनय जिन्होंने देखा होगा वे ऐसा नहीं पूछेंगे कि तापसी इतनी मुखर क्यों हैं? अनुराग कश्यप के बारे में भी यही कहेंगे। उनके विचारों से सहमति भले ही हो लेकिन उन्हें उनका विचार व्यक्त करने का पूरा अधिकार है। दीपिका पादुकोण ने जेएनयू में जाकर वहां के छात्रों से मुलाकात की तब उनके बारे में भी छिपे आंदोलन और बहिष्कार का आकलन किया गया। दीपिका की फिल्म को नियोजित तरीके से फ्लॉप करने का प्रयास ही हुआ। लेकिन सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ गंदी मुहिम चलाई गई। ये सब करनेवाले लोग कौन हैं या कौन विचारधारा के हैं, ये छोड़ो। लेकिन यह तय है कि ऐसे काम करके वे लोग देश की प्रतिष्ठा बढ़ा नहीं रहे हैं। विशेषज्ञ व्यक्तिवादी दिशा निर्देश रवि को जिस घृणात्मक तरीके से गिरफ्तार किया गया और उसको लेकर जिस प्रकार की राजनीति में मोदी सरकार पर टीका-टिप्पणी हुई, इससे देश की ही बेलाज़ती हुई। होता है। गोमांस मामले में कई लोगों की बलि चली गई। लेकिन भाजपा शासित राज्यों में गोमांस बिक्री जोरों पर है। इस पर कोई बोलता क्यों नहीं? वर्तमान में, देश में हर प्रकार की स्वतंत्रता का हवन हो रहा है। केंद्रीय जांच एजेंसी की निष्पक्षता पूर्ण कार्य की स्वतंत्रता भी जलकर खाक हो गई है। तापसी और अनुराग के मामले में वही हुआ है! ।

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