सिर पर टोपी हरी, हाथ में किसी के सफेद झंडा तो किसी के लाल और हरा। संगठन भी एक नहीं, बल्कि अनेक। कोई यूपी से तो कोई हरियाणा और पंजाब से। यहां तक कि पश्चिम बंगाल से भी लोग पहुंचे। हर प्रदेश के किसान अपनी संस्कृति के अनुरूप वेशभूषा में थे। पंचायत स्थल पर दूर तक यही नजारा था, जिससे भांति भांति के रंग के झंडों से पटा सैलाब नजर आ रहा था। बावजूद सबकी जुबां पर एक ही बात थी, कृषि कानूनों को वापस लो।
रविवार को मुजफ्फरनगर में राजकीय इंटर कॉलेज (जीआईसी) के मैदान पर महापंचायत में किसानों के बीच एक लघु भारत सिमट आया। जितने लोग जीआईसी के मैदान पर करीब उतने ही बाहर सड़क पर आ जा रहे थे। इनमें जोश देखते ही बन रहा था। किसानों के जत्थे अपनी अलग वेशभूषा में भी थे। भाकियू उग्राहू की महिलाएं पीले रंग का दुपट्टा ओढ़कर पहुंची, जिनके हाथों में झंडे भी हरे और पीले रंग के थे। इन महिलाओं में बलजीत कौर, अमरजीत कौर संगरूर (पंजाब) से करीब 80 महिलाओं के साथ पहुंची। पश्चिम बंगाल से ऑल इंडिया किसान सभा के सच्चिदानंद कंडारी, सोमनाथ सिंह, राजूब अली और श्यामलाल आदि लाल झंडा और बैनर लेकर पहुंचे। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल में धान, आलू और जूट की फसल ज्यादा होती है, लेकिन वाजिब दाम नहीं मिलता, कट मनी का खेल पूरे प्रदेश में चलता है, जिस कारण किसान आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं।
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