जसवंतनगर-करहल :उत्तर प्रदेश की यादव बेल्ट के रूप में माने जाने वाली दो सीटों पर इस बार पूरे प्रदेश की नजर है। ये सीटें हैं मैनपुरी जिले की करहल और उससे सटे इटावा जिले की जसवंत नगर सीट। दोनों सीटें इस कारण अहम हैं क्योंकि करहल से अखिलेश यादव खुद विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं तो जसवंत नगर सीट से उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव खड़े हैं। एनबीटी ने दोनों सीटों पर ग्राउंड जीरो से जाना कि सियासी बयार किस दिशा में बढ़ रही है और यादवों का सबसे बड़ा दुर्ग, क्या इस साल भी अभेद्य रहेगा।
करहल सीट : हर तरफ लाल टोपी वाले, जीत के मार्जिन पर चर्चा
इटावा और मैनपुरी को जोड़ने वाली करहल सीट एक्सप्रेस-वे से सटी हुई है। वहां करहल बाजार में प्रवेश करते ही चारों ओर लाल टोपी की सक्रियता बताती है कि इस इलाके को यादवों का गढ़ क्यों कहा जाता है। यहां चाय बना रहे शैलेश यादव चुनावी माहौल पूछने पर तपाक से बताते हैं- अखिलेश रेकॉर्ड तोड़कर जीतेंगे। उनकी बात पर वहां बैठे सभी लोग हामी भरते हैं। इटावा में पढ़ने वाले करहल के आकाश यादव कहते हैं कि इस बार यहां चुनाव में बस एक बात पर चर्चा हो रही है कि अखिलेश यादव की जीत का अंतर अब तक का सबसे अधिक होगा या नहीं।
लोग बोले यादवों की बनाई नकारात्मक छवि
वहीं बात चली यादवों के गढ़ की तो सवाल पूछा कि बाकी जातियां कहीं लामबंद तो नहीं होंगी यादव के खिलाफ? इस सवाल पर वहां मौजूद लोगों में टीस झलकती है। वहां मौजूद तीन-चार लोग एक साथ कहते हैं कि यादव मतलब मारपीट, दूसरों का दमन… ऐसी गलत-नकारात्मक छवि बना दी गई कि हमें बहुत दुख होता है। वे कहते हैं कि उन्होंने अपने आसपास किसी यादव को दूसरी जातियों के साथ दबंगई करते नहीं देखा है।
जितेंद्र प्रकाश भी इनकी बात से सहमत हैं। वह जोड़ते हैं, अपने इलाके में विकास करना कहां से अपराध हो गया। सभी चुने गए जनप्रतिनिधियों को ऐसा ही अपने-अपने इलाके के लिए करना चाहिए। वे शिकायत करते हैं कि जब योगी आदित्यनाथ प्रदेश में अपने क्षेत्र गोरखपुर पर अतिरिक्त ध्यान देते हैं तब तो कोई शिकायत नहीं करता। करहल विधानसभा में एसपी की मजबूती का पता इसी बात से चलता है कि पिछले 6 चुनावों में पांच बार पार्टी जीती। पार्टी को अंतिम बार यहां 2002 में हार मिली थी। पूरे विधानसभा में लगभग 3 लाख 70 हजार वोटर हैं जिनमें आधे के करीब सिर्फ यादव वोटर हैं। इसके बाद शाक्य, जाटव और राजपूत की तादाद है।
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि यादवों के गढ़ में चिंता की कोई लकीर नहीं है। करहल बाजार के दूसरे छोर पर कपड़ा विक्रेता शलभ जैन पहले कहते हैं कि वोट अखिलेश यादव को ही देंगे, लेकिन आसपास भीड़ छंटती है तो खुलकर बात करते हैं। वे कहते हैं कि मेरा पूरा परिवार बीजेपी का सपोर्टर है और उसे ही वोट करेगा लेकिन वे लोगों के सामने इस बारे में बात नहीं करना चाहते। दुकान से कुछ दूर ठेले पर सामान बेचने वाले हीरा कश्यप भी दबी जुबां में कहते हैं कि फूल को वोट देंगे। वजह बताते हुए कहते हैं – फ्री राशन मिलता है। कोई डर नहीं है। सबकुछ ठीक है।
बीजेपी ने इस इलाके के ऐसे ही साइलेंट वोटरों के सामने अपने उम्मीदवार के रूप में केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा है। भले सामाजिक समीकरण के हिसाब से बीजेपी के लिए यहां अखिलेश यादव के सामने बेहद कठिन चुनौती है लेकिन करहल में ही बीजेपी कार्यकर्ता समीर सिंह दावा करते हैं कि 2019 में इसी प्रदेश में बीजेपी ने जो अमेठी में किया था, इस बार ऐसा ही कारनामा करहल विधानसभा चुनाव में करेगी। उनका आशय था कि जैसे स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराया, इस बार बघेल भी अखिलेश यादव को हराएंगे।
मोदी लहर में भी सपा ने निकाली थी सीट
हालांकि इन दावों के विपरीत हकीकत है कि 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बीच भी एसपी इस सीट को जीतने में सफल रही थी। फिर भी ओबीसी समुदाय से आने वाले एसपी सिंह बघेल को टिकट देकर बीजेपी ने संकेतात्मक लड़ाई बनाने की कोशिश की है। कभी मुलायम सिंह यादव के पीएसओ के रूप में काम करने वाले बघेल को मुलायम ने राजनीति में उतारा और 1998 में लोकसभा सांसद बनवाया। वह लगातार तीन बार चुनाव जीते। 2009 में विवाद होने पर वह बीएसपी चले गए। बीजेपी में शामिल होने के बाद 2019 में लोकसभा चुनाव में आगरा से सांसद बने।
जसवंत नगर : यहां शिवपाल को सुख-दुख का साथी मानते हैं लोग
करहल से ठीक सटे इटावा जिले की जसवंत नगर विधानसभा सीट न सिर्फ यादवों का गढ़ माना जाता है बल्कि मुलायम सिंह यादव के परिवार के लिए भी यह अभेद्य किला रहा है। मैनपुरी-सैफई से ठीक सटे इस क्षेत्र में घूमने पर तुरंत अहसास हो जाता है कि यह अभी भी शिवपाल सिंह यादव का मजबूत दुर्ग बना हुआ है। वहां दुलार यादव शिवपाल यादव के लगातार जीतने के कारण बताते हैं। कहते हैं – किसी भी बिरादरी के लोग शिवपाल यादव के घर पहुंच जाएं तो उनका काम होना तय है। वह उंगली पर गिनाते हैं कि किस तरह उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को नौकरी दिलाने से लेकर तमाम दूसरी मुश्किलों में उनका साथ दिया।
वहीं लक्ष्मी देव सिंह कहते हैं कि वे मूलत: मोदी-योगी के बहुत बड़े सपोर्टर हैं लेकिन अपने इलाके के लिए शिवपाल यादव को वोट करेंगे। उनका तर्क है कि जो व्यक्ति सुख-दुख में साथ दिखे, ऐसे ही स्थानीय जनप्रतिनिधि का चुनाव होना चाहिए। उनकी पसंद यहां शिवपाल हैं, लेकिन इस उम्मीद के साथ कि बाकी पूरे राज्य में बीजेपी को 300 से अधिक सीटें मिलेंगी।
जब शिवपाल के आगे फेल हुई थी मोदी लहर
जसवंत नगर विधानसभा सीट से शिवपाल सिंह यादव 2017 में बीजेपी लहर के बावजूद पचास हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीते थे। 1967 से इस सीट से हमेशा यादव विधायक जीते हैं और 1980 से मुलायम सिंह यादव परिवार का ही जनप्रतिनिधि यहां से रहा। 1993 तक खुद मुलायम सिंह यादव यहां से विधायक रहे। उसके बाद से लेकर शिवपाल सिंह यादव इस सीट पर अजय हैं। इस सीट पर लगभग 38 फीसदी यादव वोटर हैं जो यहां जीत-हार तय करते हैं।
बीजेपी ने शिवपाल सिंह यादव के सामने 32 वर्षीय कैंडिडेट विवेक शाक्य को टिकट दिया है। पहली बार चुनाव लड़ रहे बीजपी उम्मीदवार के प्रति खासकर बीजेपी वोटर में सहानुभूति तो है लेकिन वे जानते हैं कि उनके सामने कितनी कठिन परीक्षा है। बीजेपी के कट्टर समर्थक मनीष मिश्रा कहते हैं कि बीजेपी ने युवा उम्मीदवार को टिकट देकर संदेश दे दिया कि भविष्य में वह इस गढ़ में भी सेंध लगाएगी।
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