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योग दिवस पर वाईएसएस रांची में नवांगतुकों ने “योग

LagatarDesk :  “आप शांति नहीं खरीद सकते; आपके लिए यह जानना आवश्यक है कि ध्यान के अपने दैनिक अभ्यास की निश्चलता में अपने अंतर में उसका निर्माण कैसे किया जा सकता है.” अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) के संस्थापक  श्री श्री परमहंस योगानंद के इन शब्दों के साथ वरिष्ठ वाईएसएस संन्यासी स्वामी ईश्वरानंद गिरि ने इस आध्यात्मिक संस्था के रांची आश्रम से लाइवस्ट्रीम किये गये ऑनलाइन कार्यक्रम में 2,500 से अधिक श्रोताओं, जिनमें अनेक नवागंतुक भी सम्मिलित थे, का ध्यान-योग के सिद्धांतों से परिचय कराया.

आश्रम का शांत वातावरण निर्देशित ध्यान-सत्र के इस कार्यक्रम के लिए आदर्श था. इस कार्यक्रम के माध्यम से श्रोता उस शांति को अनुभव कर सके जिसे योग के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. संपूर्ण विश्व में भारत के प्राचीन क्रियायोग विज्ञान के प्रसार, जिसका वर्तमान प्रतीक यह अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है,  में श्री श्री परमहंस योगानंदजी के योगदानों की प्रशंसा करते हुए स्वामीजी ने कहा कि उन्होंने विश्व को एक व्यावहारिक पद्धति प्रदान की जिसके द्वारा जीवन के सभी क्षेत्रों के आध्यात्मिक साधक शांति का अनुभव कर सकते हैं और आत्मसाक्षात्कार के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं.”

स्वामीजी ने क्रियायोग की शिक्षाओं की अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए सत्यान्वेषियों को आमंत्रित किया और घर में रहकर ही अध्ययन करने के लिए वाईएसएस मार्ग में उपलब्ध पाठमाला के बारे में अधिक जानकारी के लिए वाईएसएस वेबसाइट देखने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया. योगानन्दजी की श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या,  ईश्वर-अर्जुन संवाद, से उद्धृत करते हुए,  स्वामीजी ने योग से प्राप्त होने वाले लाभों के बारे में बताया : “योग सिखाता है कि जहां ईश्वर हैं, वहां कोई भय नहीं है, कोई चिंता नहीं है. सफल योगी टूटते हुए संसारों के टकराव के मध्य अविचलित खड़ा रह सकता है. एकमात्र सच्ची स्वतंत्रता ईश्वर में ही निहित है. इसलिए  ध्यान में रात-दिन  और पूरे दिन अपने सभी कार्यों एवं कर्तव्यों को करते हुए, ईश्वर से संपर्क स्थापित करने का गहन प्रयास करें.”

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योगानन्दजी की पुस्तक “दिव्य प्रेमलीला (The Divine Romance)” का हिंदी में प्रकाशन इस अवसर पर स्वामी ईश्वरानन्दजी ने योगानन्दजी के व्याख्यानों एवं निबंधों के एक संकलन का हिंदी अनुवाद, “दिव्य प्रेमलीला (The Divine Romance)” का उद्घाटन भी किया. इस पुस्तक में व्यापक ज्ञान, प्रोत्साहन  और मानवता के प्रति प्रेम का अनूठा संगम देखने को मिलता है. जिनके कारण गुरुदेव और वाईएसएस के संस्थापक की गिनती हमारे युग के आध्यात्मिक जीवन के सर्वाधिक विश्वसनीय मार्गदर्शकों में की जाती है.

स्वामीजी ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से प्रेम की धारणा को और उसे प्राप्त करने के उपाय को अधिक अच्छे ढंग से समझा जा सकता है.” इसके लिए उन्होंने इस पुस्तक के इन शब्दों को उद्धृत किया.  “संपूर्ण विश्व ने आज प्रेम शब्द के वास्तविक अर्थ को विस्मृत कर दिया है. प्रेम का मनुष्य द्वारा इतना दुरुपयोग हुआ है. इसे इतनी बार सूली पर चढ़ाया गया है कि बहुत कम लोग ही जानते हैं कि सच्चा प्रेम क्या है. सबसे महान प्रेम को आप ईश्वर के साथ संपर्क करके ही अनुभव कर सकते हैं. आत्मा और परमात्मा के बीच का प्रेम परिपूर्ण प्रेम है,  जिस प्रेम को आप सभी की खोज कर रहे हैं.”

हिंदी भाषा में अनुदित,  यह पुस्तक श्री श्री परमहंस योगानन्द की क्रियायोग और आदर्श-जीवन शिक्षाओं का देश में अधिक व्यापक प्रसार करने में सहायक सिद्ध होगी. स्वामी ईश्वरानन्दजी ने इस “आध्यात्मिक निधि” के परिचय से ये शब्द उद्धृत किए, “ईश्वर करें यह खंड असंख्य पाठकों के लिए, उनके आध्यात्मिक पथ पर दिव्य प्रकाश की एक किरण, प्रेरणा लाते हुए, मार्गदर्शन और जीवन को एक नया अर्थ दे.”

वार्ताओं में  जो अनौपचारिक सभाओं अथवा कुछ शिष्यों के छोटे समूहों के साथ सत्संग में अथवा ध्यान की कक्षाओं में दी गयी थीं, गुरुजी ने उपस्थितजनों को आनन्दपूर्ण दिव्य प्रेम-लीला की एक झलक प्रदान करते हुए ईश्वर के साथ आनंदमय समागम का अनुभव किया था — जिनमें से कुछ प्रेरणादायक वचन इस पुस्तक में सम्मिलित किया गये हैं. क्रियायोग – जानकारी के लिए : yssi.org/Lessons  पुस्तक के लिए: yssi.org/Books

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