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Editorial: देश को संस्कृत की महत्ता समझना आवश्यक

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28-6-2022

भाषा लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का माध्यम बनती है, भाषा हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमारे विचारों को एक ढांचे में पिरोती है और हमारी भावनाओं को दूसरों के साथ साझा करने का भी माध्यम बनती है। आज लोगों में अलग-अलग भाषाएं सीखने की होड़ लगी है। हमारे देश में ही न जाने ऐसे कितने कोचिंग सेंटर हैं जो फ्रेंच, जर्मन और अरबी जैसी विदेशी भाषाएं सिखाते हैं। अंग्रेजी तो मानो जैसे अंग्रेज़ों से ज़्यादा भारतीयों की भाषा बन चुकी है। लेकिन इन सब के बीच जो हमारी स्वयं की प्राचीन भाषा है, जो हजारों सालों से चली आ रही है और हमारे देश की पहचान है उस संस्कृत भाषा को तो जैसे हम भूल ही गए हैं।

इसी स्थिति को सुधारने के लिए गुजरात की राज्य सरकार के साथ हुई एक बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने कक्षा एक से अनिवार्य रूप से संस्कृत पढ़ाने की अपील की है। सूत्र बताते हैं कि शिक्षा मंत्री जीतू वघानी, गुजरात बीजेपी रत्नाकर के सांगठनिक महासचिव, विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संघ के वरिष्ठ प्रतिनिधियों से मुलाकात कर नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर चर्चा की थी। नई शिक्षा नीति की तीन भाषा नीति अनिवार्य रूप से सिखायी जाने वाली किसी विशिष्ट भाषा पर जोर नहीं देती है। इसमें कहा गया है कि भाषा का चयन राज्यों, क्षेत्रों और स्वयं बच्चों द्वारा चुने गए विकल्पों के आधार पर होगा, बशर्ते तीन में से दो भाषाएं भारत की हों।

ऐसा ही लंदन में बसा एक स्कूल है संत जेम्स जहां छोटे-छोटे बच्चे संस्कृत के श्लोक बोलते सुनाई देंगे और वह भी शुद्ध उच्चारण के साथ। इस स्कूल का कहना है कि संस्कृत पूर्णतया समृद्ध भाषा है, शब्दावली में समृद्ध, साहित्य में समृद्ध, विचारों में समृद्ध, अर्थों और मूल्यों में समृद्ध।

“संस्कृत भाषा की एक अद्भुत संरचना है; ग्रीक की तुलना में अधिक परिपूर्ण, लैटिन की तुलना में अधिक प्रचुर, और दोनों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट रूप से परिष्कृत।“

संस्कृत वर्णमाला की संरचना, जिसे किंडरगार्डन में बच्चों को सिखाया जाता है वह इस तरह लिखी गई है कि इसकी वर्णमाला के अक्षर बच्चे आराम से बोल और सीख सकते हैं। वर्णमाला की ध्वनियां अपनी सीमा में व्यापक हैं और प्रारंभिक अवस्था में बच्चों के भाषाई कौशल को काफी विस्तृत करती हैं।

दुर्भाग्य से जहां पूरी दुनिया में लोग संस्कृत के महत्व, व्याकरण और पवित्रता को जानने के इच्छुक हैं, वहीं हम भारतीय कहीं न कहीं अपनी पहचान खो रहे हैं। गुजरात या कोई इक्का-दुक्का राज्य में ही क्यों संस्कृत को तो पूरे भारत में फिर से जागृत करने के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए। हालांकि अब देश की सरकार अपनी संस्कृति को संजोने का हर संभव प्रयत्न कर रही है और आशा है कि उनके इस प्रयत्न में वे संस्कृत को भी सहेज सकेंगे और यह भाषा एक बार फिर भारत में अपना सम्मान पा सकेगी।