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हाईकोर्ट : एनसीआर दर्ज है तो बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के पुलिस असंज्ञेय अपराध की नहीं कर सकती विवेचना

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संज्ञेय अपराध की प्राथमिकी की पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता के तहत विवेचना कर रिपोर्ट पेश करने का पूरा अधिकार है। किन्तु, असंज्ञेय अपराधों में ऐसा नहीं है। अंसज्ञेय अपराध में दर्ज रिपोर्ट पर पुलिस अपने आप विवेचना नहीं कर सकती। विवेचना करने से पूर्व न्यायिक मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने शिवम सोलंकी की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट से अनुमति लिए बगैर पुलिस विवेचना अवैध है और इसके आधार पर सारी कार्यवाही विधि विरुद्ध है। कोर्ट ने कहा चार्जशीट संज्ञेय अपराध की है। जबकि, केस के तथ्य से संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करते। असंज्ञेय अपराध के आरोप की बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के विवेचना कर चार्जशीट दाखिल करना धारा 155 (2) के खिलाफ है। इसलिए पुलिस चार्जशीट भी अवैध है। इसलिए पूरी कार्यवाही अवैध हो जायेगी।

कोर्ट ने कहा पीड़िता ने 164 के मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान मे दुष्कर्म का पहली बार आरोप लगाया। इससे पहले ऐसा नहीं था। कोर्ट ने कहा अपराध हुआ है या नहीं, यह पीड़िता व चश्मदीद के बयान से तय होगा। कोर्ट ने कहा आरोपी छात्र है। झूठे आरोप उसके भविष्य को बर्बाद कर सकते हैं। पीड़िता के बयान में तारतम्यता नहीं है। इसलिए उसके बयान विश्वसनीय नहीं है।

कोर्ट ने आगरा की अदालत में चल रही पूरी आपराधिक कार्यवाही को अवैध करार देते हुए रद कर दिया है। याची के खिलाफ आगरा के हरिपर्वत थाने में एनसीआर दर्ज हुई। इसके बाद पुलिस ने विवेचना कर चार्जशीट दाखिल की। सीजेएम आगरा ने रिपोर्ट पर संज्ञान लेकर सम्मन जारी किया। जिसे चुनौती दी गई थी।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी बेटी को आरोपी ने रामनगर कालोनी के गेट पर बुलाया और साथियों के साथ पीड़िता से गाली गलौज की। मारपीट की। असंज्ञेय अपराध की एफआईआर दर्ज की गई। नियमानुसार विवेचना से पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी चाहिए थी। ऐसा नहीं किया और चार्जशीट दाखिल कर दी।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संज्ञेय अपराध की प्राथमिकी की पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता के तहत विवेचना कर रिपोर्ट पेश करने का पूरा अधिकार है। किन्तु, असंज्ञेय अपराधों में ऐसा नहीं है। अंसज्ञेय अपराध में दर्ज रिपोर्ट पर पुलिस अपने आप विवेचना नहीं कर सकती। विवेचना करने से पूर्व न्यायिक मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने शिवम सोलंकी की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट से अनुमति लिए बगैर पुलिस विवेचना अवैध है और इसके आधार पर सारी कार्यवाही विधि विरुद्ध है। कोर्ट ने कहा चार्जशीट संज्ञेय अपराध की है। जबकि, केस के तथ्य से संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करते। असंज्ञेय अपराध के आरोप की बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के विवेचना कर चार्जशीट दाखिल करना धारा 155 (2) के खिलाफ है। इसलिए पुलिस चार्जशीट भी अवैध है। इसलिए पूरी कार्यवाही अवैध हो जायेगी।