जालौन: मानसून ने इस बार उत्तर प्रदेश में देरी से दस्तक दी। इसका नतीजा यह हुआ कि किसान फसलों की बुवाई के लिए मेघों का इंतजार करते रहे, लेकिन मानसून अपने तय समय के बाद काफी देरी से पहुंचा और इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ा। बुंदेलखंड, जोकि सूखाग्रस्त इलाकों में शुमार है, लेकिन देरी से हुई झमाझम बारिश ने यहां के किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। किस्तों में हो रही बारिश ने यहां के पिछले 5 सालों का रेकॉर्ड तोड़ दिया और झमाझम बारिश होने की वजह से सातों जिले सूखे की श्रेणी से बेदखल हो गए हैं।
दरअसल, मानसून में हुई देरी से खेतों में फसलों की बुवाई नहीं सकी। जिसको लेकर बुंदेलखंड के सातों जिलों को लगातार सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की जा रही थी। वहीं, सरकार ने यूपी के हालातों को देखते हुए प्रदेशभर के 62 जिलों में सूखे को लेकर सर्वे करने के आदेश दिए थे और 16 सितंबर को रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है। जिसमें बुंदेलखंड के महोबा, हमीरपुर, झांसी, जालौन, बांदा, ललितपुर, चित्रकूट बाहर हो गए। हालांकि, इस सरकारी रिपोर्ट के पहले ही 15 सितंबर को NBT ऑनलाइन ने अपनी रिपोर्ट में जाहिर किया था कि बुंदेलखंड में सूखाग्रस्त को लेकर संशय की स्थिति बरकरार और किसानों की उम्मीदों पर ग्रहण लग सकता है। इस खबर पर पूरी तरह से अब शासन की मुहर लग चुकी है।
मानकों पर खरा नहीं उतरा बुंदेलखंड का सूखा
बुंदेलखंड में देरी से हुई बारिश ने यहां के किसानों की उम्मीदों पर पानी फेरा और फसलों की बुवाई न होने से सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग उठाई जाने लगी, लेकिन बुंदेलखंड का सूखा सरकारी मानकों में खरा नहीं उतर सका। कृषि विभाग और राजस्व विभाग की ओर से किए गए सर्वे में यहां के जिलों में बमुश्किल 10 से 15 फीसदी फसलों का नुकसान बताया गया है और 16 सितंबर को प्रदेश के मुख्यमंत्री को इसकी रिपोर्ट सौंप दी गई। सरकारी मानकों के अनुसार, 33 फीसदी से कम नुकसान होने पर किसानों को फसल बीमा और कृषि अनुदान का लाभ दिया जाता है। मानकों के अनुसार यह आंकड़ा खरा नहीं उतर सका।
दैवीय आपदा की चपेट में किसान
2021 की तरह इस बार भी हालात वैसे ही हैं। किसानों पर दैवीय अपदाओं का कहर बरकरार है। निश्चित तौर पर यहां के किसान तीन बार दैवी आपदा का शिकार बनते हैं। कभी ओलावृष्टि, कभी मूसलाधार बारिश तो कभी बेतहाशा बाढ़ किसानों के अरमानों को रौंद देती है और यह सिलसिला लगातार जारी है। पूरे साल में दो बार फसल की बुवाई करने वाले किसानों की सांसें सरकारी आंकड़ों के बीच अटकी रहती हैं। 2021 में अगस्त माह में हुई तेज बारिश से रवी की पूरी फसल बर्बाद हो गई थी। फिर जनवरी 2022 में हुई ओलावृष्टि में अपना कहर ढा दिया, जिसमें 90 फीसदी फसल का नुकसान हुआ था। इन दैवी आपदाओं के बीच किसान किसी तरह से अपने परिवार के साथ गुजर बसर कर रहे हैं। इस बार मानसून की बेरुखी से बुवाई नहीं हो सकी। वहीं, सर्वे में 33 से 50 फीसदी नुकसान की स्थिति को शून्य दर्शाया गया है। यही वजह रही कि आंकड़ों में जिले सूखाग्रस्त घोषित नहीं हो सके हैं।
रिपोर्ट – विशाल वर्मा
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