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इसरो वैज्ञानिक प्रो. रैमिल्ला बोले- सेटेलाइट इमेज से होगा भ्रष्टाचार का खुलासा

आने वाले समय में सेटेलाइट इमेज से भ्रष्टाचार का खुलासा होगा। पुल, हाईवे के निर्माण जैसी बड़ी परियोजनाओं के आंकड़े छिपाने वाले रंगे हाथों पकड़े जाएंगे। यह सब अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से संभव हो सकेगा। चुटकी बजाते ही पता चल जाएगा कि कागज पर क्या रिपोर्ट दी गई है जबकि मौके पर क्या स्थिति है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग में बुधवार को व्याख्यान देने आए इसरो के वैज्ञानिक डॉ.मूर्ति रैमील्ला ने बताया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तेजी से विकसित हो रही है। आने वाले समय में दैनिक जीवन में इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। कृषि के क्षेत्र में इस पर काम शुरू भी हो चुका है। सेटेलाइट इमेजरी सिस्टम से पता लगाया जा रहा है कि देश में गेहूं की कितनी फसल रोपी गई और अनुमानित उत्पादन क्या होगा।

बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा पर नियंत्रण के लिए भी सेटेलाइट इमेज मददगार साबित होगी। सरकार चाहे तो अवैध खनन, नदियों के किनारे तेजी से बढ़ रहे अतिक्रमण, प्रदूषण पर नियंत्रण आदि के लिए भी सेटेलाइट इमेज का उपयोग कर सकती है। स्थानीय प्रशासन भी इसकी मदद से बेहतर काम कर सकता है। अधिकतर राज्यों में स्पेस अप्लीकेशन सेंटर बनाए गए हैं, जहां से स्थानीय प्रशासन आवश्यक जानकारियां एवं आंकड़े प्राप्त कर सकता है।

1980 से सेटेलाइट इमेज का रिकॉर्ड है। इससे पता लगाया जा सकता है कि किसी क्षेत्र में दस वर्ष पहले कितने पेड़ थे और अब कितने फीसदी पेड़ बचे हैं। भविष्य में पर्यावरण के साथ जल संरक्षण की दिशा में भी सेटेलाइट इमेजरी सिस्टम महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। दक्षिण भारत के कई ऐसे राज्य हैं, जहां सेटेलाइट इमेज से मछुआरों को जानकारी दी जाती है कि नदी के किस हिस्से में अधिक मछलियां हैं। इससे मछुआरों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

वहीं, ट्रैफिक कंट्रोल में भी सेटेलाइट इमेज काफी मददगार हो सकती है। इससे एक्सीडेंट जोन को भी चिह्नित कर वहां आवश्यक सुधार किए जा सकते हैं। इसी आधार पर उचित स्थानों पर अस्पतालों की स्थापना भी की जा सकती हैै। कार्यक्रम के संयोजक इविवि के भौतिक विज्ञान विभाग के प्रो.केएन उत्तम ने विश्वविद्यालय आने के लिए डॉ.मूर्ति के प्रति आभार व्यक्त किया।

आने वाले समय में सेटेलाइट इमेज से भ्रष्टाचार का खुलासा होगा। पुल, हाईवे के निर्माण जैसी बड़ी परियोजनाओं के आंकड़े छिपाने वाले रंगे हाथों पकड़े जाएंगे। यह सब अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से संभव हो सकेगा। चुटकी बजाते ही पता चल जाएगा कि कागज पर क्या रिपोर्ट दी गई है जबकि मौके पर क्या स्थिति है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग में बुधवार को व्याख्यान देने आए इसरो के वैज्ञानिक डॉ.मूर्ति रैमील्ला ने बताया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तेजी से विकसित हो रही है। आने वाले समय में दैनिक जीवन में इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। कृषि के क्षेत्र में इस पर काम शुरू भी हो चुका है। सेटेलाइट इमेजरी सिस्टम से पता लगाया जा रहा है कि देश में गेहूं की कितनी फसल रोपी गई और अनुमानित उत्पादन क्या होगा।

बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा पर नियंत्रण के लिए भी सेटेलाइट इमेज मददगार साबित होगी। सरकार चाहे तो अवैध खनन, नदियों के किनारे तेजी से बढ़ रहे अतिक्रमण, प्रदूषण पर नियंत्रण आदि के लिए भी सेटेलाइट इमेज का उपयोग कर सकती है। स्थानीय प्रशासन भी इसकी मदद से बेहतर काम कर सकता है। अधिकतर राज्यों में स्पेस अप्लीकेशन सेंटर बनाए गए हैं, जहां से स्थानीय प्रशासन आवश्यक जानकारियां एवं आंकड़े प्राप्त कर सकता है।