नवीन शिक्षा नीति (स्व शिक्षा) की आवश्यकता ,प्रावधान व क्रियान्वयन की समीक्षा
स्थिति परिस्थिति एवं भविष्य
नीति: उद्देश्य एवं क्रियान्वयन के व्यवहार पक्ष
नीति :क्रियान्वयन चुनौती
नियोजन,रचना,आकल्पन,अधोसंरचना और विकास
भारत की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव कालखंड चल रहा हैI प्रत्येक ऐसे उत्सव हमें अवसर
देते हैं कि उत्सव के साथ साथ हम उसका पुनरावलोकन, आत्मावलोकन एवं समीक्षा करेंI
यह अवसर है कि विमर्श हो की वैधानिक रूप से “स्व” के अधीन होने के बाद भी क्या हम वास्तव में “स्व” हैंI व्याप्त,व्यवस्था, तंत्र, प्रक्रिया, राजनीतिक तंत्र, अर्थ तंत्र अथवा न्यायतंत्र, इसकी आत्मा में “भारतीयता” कहां है? क्या बिना भारतीयता के स्वर्णिम भारत की कल्पना की जा सकती हैI वह मूल तत्व जिससे उपरोक्त लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है तो सिर्फ एवं सिर्फ “स्व” सेI
शिक्षा का तंत्र जीवन बनाता है,समाज बनाता है,परिवार बनाता है,राष्ट्र बनाता हैI स्व शिक्षा व्यवस्था मनुष्य को केवल ऊर्जा की नित्यता का सिद्धांत ही नहीं सिखाती वरन किसी भी परिस्थिति में धर्मानुसार कार्य करने को प्रेरित करती हैI
सिर्फ शिक्षण/प्रशिक्षण,अनुसंधान,अन्वेषण एवं शोध जीविकोपार्जन के अर्थ में आत्मनिर्भर तो कर सकती है, किंतु स्वा के अभाव में स्वाबलंबी कदापि नहीं बना सकतीI
वर्तमान शिक्षा मॉडल,आर्थिक दबाव व उसके उद्देश्य की पूर्ति करती अधिक दिखती है जैसे प्रबंधन का क्षेत्र, विपणन क्षेत्र,प्रचार-प्रसार क्षेत्र आदिI किंतु उपरोक्त पद्धति/क्षेत्र में दक्षता विशेषज्ञता का हेतु क्या है, किस लिए है, की विवेचना कर तो पाएंगे, इसके हेतु मुख्यत: भारत के बाहर बनी तकनीकी आधार पर बाहरी समूह के अर्थलाभ के लिए अधिक हैI इस कारण यदि हमें समग्र रूप से भारत को स्वर्णिम बनाना है, तो“आत्मनिर्भरता” से भी आगे जाकर “स्वाबलंबी” बनाना होगाI इसी लक्ष्य पूर्ति के लिए नवीन शिक्षा नीति 2020 प्रस्तावित है और क्रियान्वयन की प्रक्रिया में हैI इसके ऊपर विचार-विमर्श हेतु एक दिवस की परिचर्चा आगामी 22 मार्च को प्रस्तावित हैI
इसकी रूपरेखा व योजना में आपके विचार आमंत्रित है|
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