सात भारतीय फार्मा कंपनियां इस समय कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। इन कंपनियों में भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट, जायडस कैडिला, पेनेसिया बायोटेक, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स, मिनवैक्स और बायोलॉजिकल ई शामिल हैं। सामान्य अवस्था में किसी वैक्सीन का परीक्षण करने और विकसित करने में कुछ साल का समय लग जाता है, लेकिन कोविड-19 महामारी के भीषण प्रकोप के देखते हुए वैज्ञानिक कोरोना वायरस के खिलाफ कुछ महीनों में ही वैक्सीन विकसित करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।
भारत बायोटेक को कोवैक्सिन के नाम से बनाए गए टीके के क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी मिल चुकी है। पिछले सप्ताह इसका क्लीनिकल ट्रायल प्रारंभ किया गया। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी इस साल के आखिर तक टीका बना लेने की उम्मीद जताई है। सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अडार पूनावाला ने कहा, ‘अभी हमारी कंपनी एस्ट्राजेनेका ऑक्सफोर्ड वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। इसका तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल जारी है। अगस्त, 2020 में भारत में भी इसका क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया जाएगा। मौजूदा परिणामों के आधार पर हमें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक यह टीका उपलब्ध हो जाएगा।’ पूनावाला ने बताया कि सीरम इंस्टीट्यूट ने एक अरब टीका बनाने और उनकी आपूर्ति के लिए एस्ट्राजेनेका से समझौता किया है। इस टीके को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने बनाया है। सीरम इंस्टीट्यूट अमेरिका की बायोटेक फर्म कोडाजेनिक्स के साथ मिलकर भी एक टीके पर फिलहाल काम कर रही है। यह टीका अपने प्री-क्लीनिकल ट्रायल की अवस्था में है। साथ ही विश्व की कुछ और संस्थानों के साथ भी मिलकर भी कंपनी इस दिशा में काम कर रही है। फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने भी जायको वी-डी के नाम से तैयार टीके का क्लीनिकल ट्रायल प्रारंभ कर दिया है। कंपनी ने कहा है कि सात महीने में क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने की संभावना है। हैदराबाद की भारत बायोटेक ने रोहतक के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में क्लीनिकल ट्रायल का प्रारंभ किया है। कंपनी ने यह टीका इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ मिलकर बनाया है। वैक्सीन के परीक्षण के सामान्यत; चार चरण होते हैं। इसका पहला चरण प्री-क्लीनिकल ट्रायल का होता है, जिसके तहत जानवरों पर परीक्षण किया जाता है। इसके बाद पहले चरण का क्लीनिकल ट्रायल होता है, जिसमें छोटे समूह पर यह परखा जाता है कि टीका कितना सुरक्षित है। दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल में थोड़े बड़े समूह पर इसकी जांच की जाती है। तीसरे चरण में कई हजार लोगों को टीका लगाकर वायरस को रोकने की दिशा में टीके का प्रभाव जांचा जाता है।
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