समर्थन मूल्य पर धान बेचने वाले बिचौलियों पर लगाम के लिए राज्य शासन ने अभी से काम शुरू कर दिया है। पटवारी व ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी सीधे खेत जाएंगे और खड़ी फसल की फोटो खीचेंगे। इसके आधार पर किसानों के रकबा का निर्धारण किया जाएगा। रकबा कटौती के कारण बीते वर्ष प्रदेश में एक लाख 36 हजार 423 ऐसे किसान धान नहीं बेच पाए थे जिन्हें बिचौलियों ने खड़ा किया था।
प्रदेश में धान का समर्थन मूल्य (2,500 रुपये) अधिक होने के कारण पड़ोसी राज्यों से धान बिचौलियों के माध्यम से पहुंचता है। दूसरे राज्यों में 1,700 से 1,800 रुपये प्रति क्विंटल भाव है। इससे प्रदेश सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
किसान अपने हिस्से का धान बेचने के बाद अपने खाते से कोचियों (बिचौलियों) का धान समितियों में खपाते थे। इसके एवज में समर्थन मूल्य की राशि कोचियों को देते थे व कमीशन के तौर पर बोनस की राशि किसान रख लेते थे। यही वजह है कि बीते वर्ष की तरह इस बार भी शासन ने रकबा कम करने का लक्ष्य पटवारी व ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी को दिया है।
प्रदेश के साथ ही जिले में खेती किसानी का जोर चल रहा है। लेई और रोपा पद्घति से धान की खेती करने वाले किसान अभी खेती किसानी में व्यस्त हैं। अगले महीने से समर्थन मूल्य पर धान बेचने वाले किसानों का जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के जरिए पंजीयन किया जाएगा। राज्य सरकार ने इस बार किसानों के धान बोनी रकबा पड़ताल के लिए नया नियम बनाया है।
राज्य निर्माण के बाद यह पहली बार है जब पटवारी व ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी सीधे किसानों के खेत जाएंगे। मौके पर पहुंचकर मोबाइल के जरिए फोटो लेंगे और वीडियो भी बनाएंगे। मतलब साफ है कि पटवारी व कृषि विभाग के अधिकारी की जिम्मेदारी होगी कि किसान गलत जानकारी न दे पाएं। समर्थन मूल्य पर धान बेचने वाले किसानों द्वारा जिला सहकारी केंद्र्रीय बैेंक में पंजीयन कराने से पहले पटवारी का प्रमाण पत्र जरूरी होता था। पटवारी कार्यालय में बैठे-बैठे किसान द्वारा बताए गए रकबे का पंजीयन कर देते थे। इसी आधार पर तहसीलदार अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर देते थे। एनओसी के जरिए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक द्वारा रकबे का पंजीयन कर दिया जाता था।
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