इस बार स्कूलों, कॉलेजों सहित सारे सरकारी, निजी संस्थानों में परेड, सांस्कृतिक आयोजन तो नहीं होंगे लेकिन देश की आजादी की वर्षगांठ को लेकर उत्साह में कमी नहीं रहेगी। इस ऑनलाइन दौर में ऑनलाइन बधाइयां दी जाएंगी और आजादी के किस्से कहे-सुने जाएंगे। यह तो सभी को पता है कि 15 अगस्त 1947 को हमें आजादी मिली लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह आजादी आधी रात के समय अभिजीत मुहूर्त में मिली थी। यह लार्ड माउंटबेटन ही थे जिन्होंने निजी तौर पर भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त का दिन तय करके रखा था क्योंकि इस दिन को वे अपने कार्यकाल के लिए “बेहद सौभाग्यशाली” मानते थे। इसके पीछे खास वजह थी। असल में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1945 में 15 अगस्त के ही दिन जापान की सेना ने उनकी अगुवाई में ब्रिटेन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। माउंटबेटन उस समय संबद्ध सेनाओं के कमांडर थे। लार्ड माउंटबेटन की योजना वाली 3 जून की तारीख पर स्वतंत्रता और विभाजन के संदर्भ में हुई बैठक में ही यह तय किया गया था। 3 जून के प्लान में जब स्वतंत्रता का दिन तय किया गया और सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया तब देश भर के ज्योतिषियों में आक्रोश पैदा हुआ क्योंकि ज्योतिषीय गणना के अनुसार 15 अगस्त 1947 का दिन अशुभ और अमंगलकारी था। विकल्प के तौर पर दूसरी तिथियां भी सुझाईं गईं लेकिन माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख पर ही अटल रहे, क्योंकि यह उनके लिए बेहद खास तारीख थी। आखिर समस्या का हल निकालते हुए ज्योतिषियों ने बीच का रास्ता निकाला। उन्होंने 14 और 15 अगस्त की मध्यरात्रि का समय सुझाया और इसके पीछे अंग्रेजी समय का ही हवाला दिया जिसके अनुसार रात 12 बजे बाद नया दिन शुरू होता है। लेकिन हिंदी गणना के अनुसार नए दिन का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है। ज्योतिषी इस बात पर अड़े रहे कि सत्ता के परिवर्तन का संभाषण 48 मिनट की अवधि में संपन्न किया जाए हो जो कि अभिजीत मुहूर्त में आता है। यह मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से आरंभ होकर 12 बजकर 15 मिनट तक पूरे 24 मिनट तक की अवधि का था। भाषण 12 बजकर 39 मिनट तक दिया जाना था। इस तय समयसीमा में ही जवाहरलाल नेहरू को भाषण देना था। एक अतिरिक्त आधा और थी वो ये कि भाषण को 12 बजने तक पूरा हो जाना था ताकि स्वतंत्र राष्ट्र के उदय पर पवित्र शंख बजाया जा सके।
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