सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने धान की सूखारोधी नई किस्म आइआर-64 डीआरटी-1 विकसित किया है। यह बीज पहाड़ी और पानी की कमी वाले इलाकों के लिए बेहद उपयोगी है। सुखाड़ की स्थिति में भी धान की यह किस्म बिना पानी के 21 दिनों तक जीवित रह सकती है जबकि अन्य धान के प्रभेद इस अवधि में मर जाते हैं।
राजीव रंजन, दुमका। दुमका समेत झारखंड के कई हिस्सों में लगातार सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए इस बार बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा धान की सूखारोधी नई किस्म विकसित आइआर-64 डीआरटी-1 प्रभेद के धान की खेती के लिए 400 क्विंटल बीज उपलब्ध कराने की मांग सरकार से की गई है।
इस धान बीज की पूरी मात्रा उपलब्ध होने की स्थिति में दुमका जिले में 80 हेक्टेयर भू-भाग को आच्छादित किया जाना संभव हो सकेगा। खासकर पहाड़ी इलाकों या वैसे इलाके जहां पानी की कमी है के लिए यह प्रभेद ज्यादा ही उपयोगी है।
सुखाड़ की स्थिति में भी धान की यह किस्म बिना पानी के 21 दिनों तक जीवित रह सकती है। जबकि अन्य धान के प्रभेद इस अवधि में मर जाते हैं। बारिश कम हुई और सुखाड़ की स्थिति है, तब भी धान की यह नई किस्म अच्छी पैदावार देगी।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ में 16 क्विंटल और एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल तक धान का पैदावार संभव है। इसमें सूखा सहने की क्षमता है और 110 दिनों में ही फसल तैयार हो जाएगी।
बीएयू के वैज्ञानिकों ने मूलत: झारखंड की जलवायु और परिवेश को देखते हुए आइआर-64 को अपग्रेड कर आइआर-64 डीआरटी-1 विकसित किया है। पिछले साल ही इसका सफल परीक्षण हो चुका है और बेहतर नतीजा आने के बाद अब सुखाड़ प्रभावित इलाकों में इस प्रभेद के बीज की डिमांड तेज हुई है।
दो साल के शोध के बाद तैयार किया गया सूखारोधी बीज
बीएयू ने पहले आइआर-64 विकसित किया था। 13 साल के शोध व परिश्रम के बाद आइआर-64 तैयार हुआ था और इसके बाद दो साल की मेहनत कर आइआर-64 डीआरटी-1 प्रभेद का सूखारोधी बीज तैयार करने में सफलता मिली है।
आइआर-64 झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश में प्रचलित है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए कई राज्यों में इसकी जबर्दस्त मांग है। इसी को अपग्रेड किया गया है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, विशुद्ध रूप से यह किस्म आइआर 64 है। इसमें केवल 0.1 फीसद सुखाड़ की जीन मिलाई गई। इससे यह आइआर-64 डीआरटी-1 के रूप में विकसित हुआ है।
इस तरह से खेत में लगाना है इस प्रभेद को
मानसून के प्रवेश के बाद या 15 जून के आसपास इस धान का बिचड़ा गिरा देना है। इसे प्रति एकड़ में 16 किलोग्राम और एक हेक्टेयर में 40 किलोग्राम गिराया जाना है। 21 दिनों के बाद खेतों में इसकी रोपनी की जाएगी। वैज्ञानिकों ने बिचड़े से निकले दो-दो पौधों को एक साथ रोपनी की सलाह दी है। इस किस्म के लिए संतुलित मात्रा में खाद डाला जाना चाहिए।
बिना विलंब किए खेत व नर्सरी की तैयारी शुरू कर दें किसान
अब मानसून ब्रेक कभी भी हो सकता है। ऐसे में किसानों को अब बीज लगाने के लिए खेत व नर्सरी को तैयार करने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। कृषि विज्ञान केंद्र की प्रधान डा.किरण सिंह के मुताबिक किसानों को समय पर धान का बिचड़ा व अन्य नर्सरी तेयार कर लेना चाहिए। सामुदायिक नर्सरी को बढ़ावा देने से किसानों को ज्यादा सहूलियत हो सकती है। बीज लगाने से पहले नर्सरी स्थल में तीन गुणा एक मीटर के आकार में 20 ग्राम फयूराडान का भुरकाव करके ही बीज डालना चाहिए। फयूराडान के प्रयोग से मिट्टी में दीमक तथा मिट्टी के अन्य कीटों के प्रकोप से बचाव किया जा सकता है। किसानों को चाहिए किए ऊपरी जमीन के लिए मक्का, अरहर, उड़द एवं सब्जियों की खेती करें। किसान ऊपरी जमीन पर एकल खेती के बजाय अन्तःवर्ती एवं मिश्रित खेती पर विशेष ध्यान दें। खरीफ में धान के अलावा अरहर, मूंगफली, भिंडी, मक्का, सेम व मोटा अनाज की खेती करें। दोन जमीन पर रोपाई के लिए अनुशंसित बीज दर 40 किलो प्रति हेक्टेयर है। धान की सीधी बोआई के लिए अनुसंशित दर से 20 प्रतिशत ज्यादा बीज लेना चाहिए। किसान ऊपरी जमीन में ज्यादा से ज्यादा जैविक खाद का उपयोग करें और उरर्वक की संतुलित मात्रा दें। कोई भी उरर्वक को सूखा में नहीं डालें। फलदार वृक्षों के रोपन के लिए खोदे गए गड़ढों को कम्पोस्ट 20 किलो एवं नीम खल्ली 500 ग्राम प्रति गड़ढा मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर भरना चाहिए। गड़ढा भरने के तुरंत बाद पौधरोपण नहीं करना चाहिए बल्कि एक वर्षा होने के पश्चात ही पौधरोपण करना चाहिए।