सा ट्रायल के रूप में किया जा रहा है। इसके आधार पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय इससे संबंधित पॉलिसी बनाएगा ताकि भविष्य में जरूरी कामों के लिए लंबी दूरी तक ड्रोन उड़ाए जा सकें।
मंत्रालय ने इसके लिए देश में ड्रोन संचालित करने वाली 20 कंपनियों को काम सौंपा है, जो 100-100 घंटे ड्रोन उड़ाकर उसके परिणाम सरकार को सौंपेंगी। अभी ड्रोन का इस्तेमाल वीडियाेग्राफी या फिर सर्वे के लिए किया जाता है लेकिन भविष्य में इनका उपयोग दवाइयां, ब्लड सैंपल जैसी जरूरी चीजों की डिलीवरी करने और रेस्क्यू ऑपरेशन में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके लिए ड्रोन बीवीएलओएस (बियांड विजुअल लाइन ऑफ साइड) यानी आंखों से दूर उड़ाने की तैयारी है, फिलहाल वीएलओएस (विजुअल लाइन ऑफ साइड) यानी जहां तक दिखाई देते हैं, उड़ाया जाता है।
इस माह से कई राज्यों में ड्रोन का बीवीएलओएस ट्रायल शुरू होगा। इसमें महाराष्ट्र, मप्र, राजस्थान, एनसीआर, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड प्रमुख हैं। ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर स्मित शाह बताते हैं कि ये ड्रोन से 10 से 20 किमी. तक की दूरी तक उड़ाए जाएंगे।
फोकस एरिया ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्र होंगे। जरूरी चीजें पहुंचाने के लिए दो तरह का ट्रायल होगा। पहला तरीका एयर ड्रॉप किया जाएगा और दूसरा तरीका ड्रोन लैंडिंग कराकर होगा। ट्रायल के बाद डेटा इकट्ठा कर कंपनियां मंत्रालय को सौंपेंगी।
इसके आधार पर सरकार पॉलिसी बनाएगी। मंत्रालय के संयुक्त सचिव और ड्रोन प्रोजेक्ट के प्रमुख अंबर दुबे का कहना है कि ट्रायल के परिणाम सफल होने पर ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में ड्रोन के माध्यम से मदद भेजी जा सकेगी।
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