
उत्तर प्रदेश के Amethi जिले में रविवार की सुबह एक दर्दनाक हादसे ने पूरे पालपुर गांव को गहरे शोक में डुबो दिया। परिवार जहां अपने बुजुर्ग के अस्थि विसर्जन के लिए रायबरेली के डलमऊ स्थित रानी शिवाला घाट गया था, वहीं एक अनहोनी ने उन्हें अपूरणीय क्षति पहुंचाई। यह घटना न सिर्फ परिवार के लिए बल्कि पूरे गांव के लिए हृदय विदारक बन गई।
गंगा में स्नान बना काल
रविवार सुबह करीब 7 बजे, पालपुर गांव के रामकिशोर कौशल के परिजन, जिनका शुक्रवार को निधन हुआ था, अस्थि विसर्जन के लिए डलमऊ के प्रसिद्ध रानी शिवाला घाट पर पहुंचे। धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत से पहले सभी परिजन स्नान कर रहे थे। इसी दौरान चंद्र कुमार कौशल (60) गहरे पानी में फिसल गए और डूबने लगे।
उन्हें बचाने के प्रयास में उनके छोटे भाई बालचंद्र कौशल (42) और भतीजा अर्यांश (13) भी पानी में कूद पड़े। अफसोस की बात यह रही कि तीनों ही गहरे पानी में समा गए और उनकी जान नहीं बच सकी।
अस्पताल में डॉक्टरों ने तीनों को किया मृत घोषित
घटना स्थल पर मौजूद गोताखोर और नाविकों ने तुरंत ही बचाव कार्य शुरू किया। उन्होंने किसी तरह तीनों को बाहर निकाला और तुरंत नजदीकी अस्पताल पहुंचाया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल में डॉक्टरों ने तीनों को मृत घोषित कर दिया। इस खबर ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया।
एक ही परिवार से तीन अर्थियां उठने की आशंका ने गांव को कर दिया गमगीन
पालपुर गांव में जैसे ही यह खबर पहुंची, कोहराम मच गया। चंद्र कुमार कौशल, बालचंद्र कौशल और अर्यांश की मौत की खबर सुनते ही पूरा गांव एकत्र हो गया। महिलाएं छाती पीटने लगीं, घर में चीख-पुकार मच गई। लोग रोते-बिलखते रायबरेली के लिए रवाना हो गए।
हर दिल पसीज गया, बेटियों की पुकार ने रुला दिया
चंद्र कुमार की पत्नी सुमित्रा कौशल रो-रोकर बेसुध हो गईं। उनका कहना था – “जिसके लिए जी रही थी, वो अब नहीं रहा।” बालचंद्र की बेटियां रागिनी और मिनी अपने पिता और छोटे भाई अर्यांश को पुकारती रहीं। उनका विलाप सुनकर हर किसी की आंखें नम हो गईं। गांव की गलियां चीखों से गूंज उठीं।
धार्मिक परंपरा के चलते उजड़ गया घर
सिर्फ एक दिन पहले रामकिशोर कौशल का अंतिम संस्कार हुआ था, और ठीक अगले दिन उनके दो बेटों और एक पोते की मौत ने पूरे परिवार को सदमे में डाल दिया। चंद्रमा कौशल, चंद्र प्रकाश कौशल, विधिचंद्र कौशल, धरमचंद्र कौशल, अनिल कौशल और अन्य परिजन इस दुख से उबर नहीं पा रहे।
हर कोई बना सहारा, रिश्तेदारों ने संभाली स्थिति
घटना के बाद गांव के लोग पीड़ित परिवार के घर पहुंचने लगे। महिलाएं मदद को आगे आईं, पुरुषों ने शवों के अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू कर दीं। रिश्तेदारों ने परिवार को ढांढस बंधाया। देर शाम तक शव गांव पहुंचे और सोमवार को गडरियाडीह में अंतिम संस्कार की योजना बनाई गई है।
न घाट पर सुरक्षा, न कोई चेतावनी बोर्ड
स्थानीय लोगों ने यह सवाल उठाया कि रानी शिवाला घाट जैसे व्यस्त घाट पर कोई सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं थी? न कोई चेतावनी बोर्ड, न कोई सरकारी रेस्क्यू टीम। हर साल इस घाट पर हजारों लोग अस्थि विसर्जन के लिए आते हैं, लेकिन ऐसी लापरवाहियों के चलते यह घाट कई परिवारों के लिए काल बन चुका है।
तीन पीढ़ियों का एक साथ चले जाना गांव के इतिहास का सबसे बड़ा दुख
इस घटना में सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि एक ही परिवार की तीन पीढ़ियां – चाचा, भतीजा और पोता – एक साथ काल के गाल में समा गए। यह न सिर्फ एक व्यक्तिगत शोक है, बल्कि पूरे क्षेत्र का सामूहिक दुख है।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम बनें प्राथमिकता
ऐसे हादसों से बचने के लिए अब प्रशासन को सजग होना होगा। घाटों पर गोताखोरों की तैनाती, चेतावनी बोर्ड, और रेस्क्यू टीमें बनाना जरूरी है ताकि भविष्य में किसी और को यह त्रासदी न झेलनी पड़े।
यह घटना हर उस परिवार के लिए चेतावनी है जो धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी परंपराएं निभाते हुए सुरक्षा को नजरअंदाज कर बैठते हैं। अब समय आ गया है कि प्रशासन और आम जनता दोनों मिलकर ऐसे संवेदनशील स्थानों पर सतर्कता बरतें ताकि कोई और मां, बहन, बेटी या पत्नी अपने अपनों को यूं ही न खोए।