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कोरोना काल में स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद में फर्जीवाड़े के आरोपी डीपीएम के खिलाफ एफआईआर दर्ज

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एकीकृत बिहार से लेकर झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से अब तक कई चर्चित घोटालेबाजों को लाल कोठरी की सैर करा चुका पश्चिमी सिंहभूम जिला अब कोरोना काल में अवसर तलाश स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद प्रक्रिया में गड़बड़ी कर करोड़ों की संपत्ति अर्जित करने वाले रांची के कडरू निवासी डीपीएम नीरज कुमार यादव के गले की फांस बन चुका है. दरअसल, पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल चाईबासा में एनएचआरएम के तहत अनुबंध पर पिछले चार वर्षों से पदस्थापित जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम) नीरज कुमार यादव के द्वारा कोरोना काल में लाखों रुपये गबन करने की सुगबुगाहट जब प्रभात खबर को लगी तो, अखबार ने स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद मामले में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की मुहिम छेड़ दी, इसपर अब जिला प्रशासन ने भी अपनी मुहर लगा दी है. आरोपी डीपीएम के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी है.

चाईबासा के तत्कालीन डीपीएम नीरज कुमार यादव पर कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य विभाग में फर्जीवाड़े करने के कई गंभीर आरोप लगे हैं. इनमें बिना गुणवत्ता जांचे बगैर सप्लायरों को लाखों रुपये का भुगतान करने, 10.5 लाख से हुई पीपीई किट की खरीद में फर्जीवाड़ा करने, अपने करीबी रिश्तेदारों के नाम से दो अलग-अलग फर्म बनाकर 1.5 करोड़ से अधिक के स्वास्थ्य उपकरण एवं सामाग्रियों की खरीद करने के साथ ही फर्जी जीएसटी बिल के फर्म से खरीदारी करने का मामला पिछले एक माह से प्रभात खबर आंदोलन की तरह प्रमुखता से प्रकाशित करता आया है. उक्त सभी मामलों में जिले के डीसी अरवा राजकमल के निर्देश पर गठित जांच कमेटी ने गुरूवार को अपनी फाइनल रिपोर्ट उपायुक्त को सौंपी. जिसमें प्रभात खबर द्वारा डीपीएम नीरज कुमार यादव पर लगाये गये सभी आरोपों की पुष्टि करते हुए टीम ने सीधे तौर पर उसे दोषी ठहराया है.

ऐसे में डीसी अरवा राजकमल के निर्देश पर प्रभारी सिविल सर्जन डॉ ओमप्रकाश गुप्ता के द्वारा डीपीएम नीरज कुमार यादव के खिलाफ चाईबासा के सदर थाना में एफआईआर दर्ज करायी गयी है. इसके तहत डीपीएम के विरूद्ध स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा करते हुए सरकारी राशि का गबन करने, अपने रिश्तेदारों एवं करीबी के विभिन्न फर्मों से उपकरणों एवं सामाग्रियों की खरीद करने तथा टेंडर व कोटेशन के कागजत आदि में हेराफेरी करने की धारा 408 व 420 आदि के तहत पुलिसिया कार्रवाई की जायेगी. इतना ही नहीं, स्वयं डीसी अरवा राजकमल के द्वारा झारखंड ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन समिति सह स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अभियान निदेशक को एक पत्र लिखकर डीपीएम नीरज कुमार यादव का अनुबंध समाप्त करते हुए उसपर अनुशासनिक कार्रवाई करने की अनुशंसा भी की गयी है. साथ ही जांच टीम डीपीएम से रिकवरी के तौर पर लाखों रुपये की वसूली करने जा रहा है.

रांची के कडरू स्थित डीपीएम नीरज कुमार यादव के घर का पता और उसके दो करीबी रिश्तेदार के नाम पर रजिस्टर्ड अलग-अलग फर्म (आरुषि इंटरप्राइजेज व एमएस अमन इंटरप्राइजेज) के पते की संपुष्टि जांच टीम के द्वारा कर दी गयी है. इतना ही नहीं, डीपीएम नीरज कुमार यादव के द्वारा सदर अस्पताल में पीपीई किट की सप्लाई को लेकर जमशेदपुर की इमेज इंडिया नामक जिस कंपनी को एल-वन पाया गया था. उक्त फर्म के ओनर दिनेश शर्मा ने भी जांच टीम को डीपीएम नीरज कुमार यादव के द्वारा वर्क ऑर्डर दिये जाने से साफ तौर पर इंकार किया है. ऐसे में नीरज कुमार यादव ने फर्जी तरीके से रांची के अपने करीबी फर्म आरुषि इंटरप्राइजेज के नाम पर स्वंय वर्क ऑर्डर जारी कर दिया. वहीं जमशेदपुर की इमेज इंडिया कंपनी के ओनर ने जांच टीम को बताया कि उनके द्वारा किसी भी दूसरे फर्म को वर्क ऑर्डर देने से संबंधित कोई ऑर्थराइजेशन लेटर डीपीएम नीरज कुमार यादव को नहीं दिया गया था. जबकि, जांच टीम ने पाया कि इस पूरे पीपीई फर्जीवाड़ा प्रकरण को अंजाम देने को लेकर डीपीएम यूनिट के डेटा सेल के कंप्यूटर में ही इमेज इंडिया कंपनी का फर्जी लेटर पेड बनाया गया है.

जांच में पाया गया कि डीपीएम की एक करीबी महिला कंप्यूटर ऑपरेटर के द्वारा ही डेटा सेल के कंप्यूटर पर बैठकर इमेज इंडिया कंपनी का फर्जी लेटर पेड बनाया और प्रिंट किया गया है. इतना ही नहीं, जांच टीम के समक्ष डीपीएम की करीबी कंप्यूटर ऑपरेटर ने भी इस तथ्य का खुलासा कर दिया है. ऑपरेटर ने टीम को बताया कि डीपीएम के कहने पर ही उसने इमेज इंडिया का फर्जी ऑर्थराइजेशन लेटर टाइप किया. ऐसे में जांच टीम उक्त कंप्यूटर ऑपरेटर को डीपीएम के खिलाफ ग्वाह के तौर पर खड़ा कर सकता है. डीपीएम के करीबी रांची के आरुषि इंटरप्राइजेज, एमएस अमन इंटरप्राइजेज व चाईबासा स्थित बांधपाड़ा के एमएस एडग्लोबल तीनों फर्म के खिलाफ जिला प्रशासन राज्य कर आयुक्त को पत्र लिखते हुए शिकायत करेगा. इसे लेकर जांच कमेटी की रिपोर्ट जिला प्रशासन के द्वारा राज्य कर आयुक्त को भेजी जायेगी. ऐसे में डीपीएम के करीबी उक्त तीनों फर्म पर सरकार के जीएसटी की चोरी को लेकर भी भारी रकम के तौर पर राज्य कर आयुक्त के द्वारा पैनेलिटी लगाये जाने की संभावना है. इधर, दूसरी जांच टीम ने डीसी के आदेश की अव्हेलना करने को लेकर सदर अस्पताल के पूरी क्रय समिति पर सवाल खड़ा कर दिया है. टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि क्रय समिति के द्वारा स्वास्थ्य उपकरणों की खरीदारी के बाद गुणवत्ता जांचने के लिए किसी प्रकार का कोई मानक तय नहीं किया गया था. जिस कारण गुणवत्ता जांच को लेकर डीसी के निर्देश पर गठित दो सदस्यीय जांच टीम उपकरणों की गुणवत्ता का आंकलन कर ही नहीं सकती थी. कहा कि जब कोई मानक तय ही नहीं था तो, फिर गुणवत्ता का आंकलन आखिर किस आधार पर किया जा सकता था. ना ही सामाग्रियों के मिलान को लेकर ही कोई स्टीक पैमाना क्रय समिति के द्वारा तय किया गया था.

स्वास्थ्य उपकरणों की खरीदारी करने के बाद बिना गुणवत्ता जांच के सप्लायरों को भुगतान किये जाने के मामले को लेकर गठित जांच कमेटी ने डीसी को सौंपे अपने रिपोर्ट में बताया है कि खरीदारी के वक्त ही क्रय समिति द्वारा निकाले गये टेंडर में ही गुणवत्ता के मानक का साफ तौर पर उल्लेख किया जाना चाहिए था. कौन सी सामाग्री व उपकरण किस ब्रांड, किस कंपनी व उपकरणों का स्पेशिफिकेशन सभी तय होना चाहिए था, इन नियमों का पालन क्रय समिति के द्वारा नहीं किया गया. केवल एल-वन के आधार पर निविदा दाताओँ से खरीद कर ली गयी. कहा कि मई माह में सदर अस्पताल के क्रय समिति के द्वारा खरीद किये गये बेड, एयर मैट्रिक्स समेत ऑक्सीजन सिलेंडर में से अधिकांश उपकरणों का उपयोग अबतक स्वास्थ्य विभाग के द्वारा नहीं किया गया है. जिन सामाग्रियों की खरीद क्रय समिति के द्वारा की गयी है. उक्त में से अधिकांश सामाग्री आज भी उसी तरह से पड़ी-पड़ी धूल फांक रही है. ऑक्सीजन सिलेंडर में उसके मानक के हिसाब से गैस पर्याप्त है भी या नहीं, यह भी टीम के लिए बता पाना मुश्किल है. उसके मापने का कोई पैमानें नहीं है. इसके लिए क्रय समिति में शामिल सभी कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार से दोषी प्रतीत होते है. सबके द्वारा अपने-अपने स्तर से लापरवाही बरती गयी है.