नई दिल्ली, 10 जुलाई 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने आज बिहार में चुनाव आयोग (ECI) द्वारा किए जा रहे Special Intensive Revision (SIR) को रोकने से इनकार कर दिया, लेकिन आयोग को कड़े निर्देश दिए हैं कि वह दस्तावेजों की जांच में लचीलापन बरते और इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए।
🏛️ अदालत के निर्देश
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को मतदाता सूची को अद्यतन करना संविधान के अनुच्छेद 324 और 326 के तहत उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है।
हालाँकि, अदालत ने आयोग को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड, वोटर आईडी (EPIC) और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्रों को पहचान के लिए मान्य दस्तावेजों में शामिल करने पर विचार करे। यदि आयोग किसी दस्तावेज को अस्वीकार करता है तो उसे लिखित रूप से कारण देना होगा।
⏳ समय को लेकर चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब बिहार में चुनाव सिर्फ कुछ महीनों बाद होने वाले हैं (संभावित नवंबर में), तो इतनी जल्दी यह विशेष पुनरीक्षण क्यों शुरू किया गया? अदालत ने कहा कि इतने कम समय में व्यापक पुनरीक्षण करने से कई वैध मतदाता छूट सकते हैं।
⚖️ कानूनी स्थिति पर सवाल
याचिकाकर्ताओं — जिनमें पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), और कई सांसद शामिल हैं — ने इस विशेष पुनरीक्षण को गैर-कानूनी बताया। उन्होंने कहा कि यह न तो सामान्य संशोधन है, न ही विधिवत गजट अधिसूचना के तहत एक गहन संशोधन।
अदालत ने चुनाव आयोग से यह स्पष्ट करने को कहा है कि वह किस कानूनी प्रावधान के तहत SIR कर रहा है, और क्यों यह मौजूदा नियमों के तहत नहीं हो सकता।
📅 आगे की प्रक्रिया
- चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करना होगा, जिसमें वह बताएगा कि पुनरीक्षण की जरूरत क्यों पड़ी, किन दस्तावेजों को मान्यता दी जाएगी और नागरिकों को क्या प्रक्रिया अपनानी होगी।
- अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जिसमें अदालत यह तय कर सकती है कि प्रक्रिया में कोई संशोधन करना जरूरी है या नहीं।
🗳️ राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस पूरे मुद्दे पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पटना में विरोध मार्च में हिस्सा लेते हुए आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया लाखों लोगों के वोट छीन सकती है। चुनाव आयोग ने इस आरोप को “राजनीतिक” और “काल्पनिक आशंका” करार दिया।
ECI ने अपने बचाव में अनुच्छेद 326 और Representation of the People Act का हवाला देते हुए कहा है कि उसका उद्देश्य सिर्फ यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता भारतीय नागरिक हों और 18 वर्ष से अधिक आयु के हों।
🔍 निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चुनाव आयोग को अधिकार देता है कि वह मतदाता सूची को अद्यतन करे, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी वैध नागरिक मतदान के अधिकार से वंचित न हो। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग इन निर्देशों का पालन कैसे करता है और बिहार चुनाव से पहले प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और समावेशी बनती है।