सड़कों पर इलेक्ट्रिक कारों की बढ़ती संख्या, प्रदूषण कम करने और भविष्य के परिवहन की दिशा में बढ़ते कदम… लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस इलेक्ट्रिक क्रांति का नेतृत्व कौन कर रहा है? कौन है वह खिलाड़ी जो वैश्विक दौड़ में सबसे आगे निकल गया है, जिसने पश्चिमी देशों की दिग्गज कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया है?
**EV बाजार में चीन का दबदबा**
कभी इलेक्ट्रिक वाहन (EV) पश्चिमी देशों की कंपनियों का भविष्य माने जाते थे, लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। चीन दुनिया के EV बाजार पर हावी हो गया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में बने इलेक्ट्रिक वाहन अमेरिकी या यूरोपीय मॉडलों की तुलना में हजारों डॉलर सस्ते हो सकते हैं, और वे वैश्विक बिक्री के आधे से अधिक हिस्से पर कब्जा कर चुके हैं।
टैरिफ के बावजूद, चीनी वाहन निर्माता अपनी वैश्विक बिक्री में वृद्धि करने में सफल रहे हैं। BYD और Geely Automobile जैसी कंपनियों ने स्थापित प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में तेजी से और सस्ते में कई मॉडल लॉन्च किए हैं। इसके पीछे सरकार की भारी सब्सिडी और नवीन विनिर्माण विधियां प्रमुख कारण हैं।
एक चीनी-निर्मित EV अक्सर अमेरिका या यूरोप में विकसित इलेक्ट्रिक वाहन की तुलना में हजारों डॉलर सस्ता होता है, जबकि यह शीर्ष सुविधाओं और लंबी दूरी की बैटरी पैक भी प्रदान करता है, जो पश्चिमी देशों की तुलना में काफी किफायती हैं। यह सिर्फ कीमत का मामला नहीं है, बल्कि गुणवत्ता और तकनीक का भी है।
**यह चमत्कार कैसे हुआ?**
तो, चीन ने यह चमत्कार कैसे किया? इसके कई कारण हैं। सबसे पहले, चीनी सरकार ने EV उद्योग को बड़े पैमाने पर समर्थन दिया है। इसमें भारी सब्सिडी, कर छूट और बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश शामिल है। इन नीतियों ने चीनी कंपनियों को अनुसंधान और विकास (R&D) में भारी निवेश करने और नई तकनीकों को तेजी से अपनाने में मदद की है।
शंघाई के एक ऑटोमोबाइल विश्लेषक, लिआंग वेई का कहना है, “चीनी सरकार ने EV को एक रणनीतिक उद्योग के रूप में देखा और उस पर दिल खोलकर पैसा लगाया। उन्होंने सिर्फ गाड़ियां बनाने पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि पूरी सप्लाई चेन, बैटरी तकनीक से लेकर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर तक, सब कुछ विकसित किया।”
दूसरी वजह है, नवीन विनिर्माण क्षमता। वास्तव में, चीन की उत्पादन क्षमता इतनी विशाल है कि वे बड़े पैमाने पर उत्पादन करके लागत को कम कर सकते हैं। वे बैटरी बनाने में भी सबसे आगे हैं, जो EV का सबसे महंगा हिस्सा होता है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर मिनी शाजी थॉमस का कहना है, “मैं 2006 में बीजिंग गई थी, उससे कई साल पहले ही वहां EV पर काम शुरू हो चुका था, तभी से वहां इसपर रिसर्च चल रही थी, EV निर्माण को लेकर शुरू से ही सरकार सब्सिडी दे रही है।”
प्रोफेसर मिनी शाजी थॉमस ने आगे बताया कि “इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी निर्माण पर चीन में काफी ज़ोर दिया जा रहा है, बैटरी बनाने के लिए जो रॉ मटीरियल इस्तेमाल होता है वो वहां काफी मात्रा में मौजूद है, इससे लागत कम हुई है और चीन को EV बाजार में बढ़त मिली है।”
**वैश्विक बाजार पर प्रभाव और पश्चिमी देशों की चिंता**
चीन के इस दबदबे का पूरी दुनिया के EV बाजार पर गहरा असर पड़ रहा है। पश्चिमी देशों की कंपनियां, जैसे टेस्ला, जनरल मोटर्स और फोक्सवैगन, अब चीन की कीमत और गति से मुकाबला करने में मुश्किल महसूस कर रही हैं। वे अपनी उत्पादन लागत कम करने और नई तकनीकें विकसित करने के लिए दबाव में हैं।
यूरोपीय संघ के व्यापार आयुक्त, वाल्डिस डोंब्रोव्स्की ने हाल ही में एक बयान में कहा था, “हमें चीनी EV से बढ़ती प्रतिस्पर्धा पर गंभीरता से विचार करना होगा। यह सिर्फ आर्थिक चुनौती नहीं, बल्कि हमारी औद्योगिक क्षमता के लिए भी एक चुनौती है।” अमेरिकी सीनेटर चक शूमर ने भी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है, “हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अमेरिकी ऑटोमोबाइल उद्योग इस बदलाव में पीछे न छूटे।”
दरअसल, यह सिर्फ कार कंपनियों की बात नहीं है, बल्कि रोजगार और तकनीकी नेतृत्व का भी मामला है। अगर चीनी EV बाजार पर हावी होते रहे, तो यह पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं और उनके नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
**भविष्य की राह**
तो आगे क्या? क्या चीन का यह दबदबा यूं ही बरकरार रहेगा, या पश्चिमी देश भी अपनी रणनीति बदलकर इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में वापसी करेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा कि वैश्विक EV बाजार आगे किस दिशा में जाएगा। पश्चिमी देशों की कंपनियां अब अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने, लागत कम करने और अपनी खुद की EV तकनीक को और उन्नत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। कुछ देश तो चीनी EV पर टैरिफ बढ़ाने या उन्हें प्रतिबंधित करने पर भी विचार कर रहे हैं। यानि यह साफ है कि इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य बेहद रोमांचक होने वाला है, और इस रेस में चीन ने एक मजबूत दावेदार के रूप में अपनी जगह बना ली है।
चीन ने यह साबित कर दिया है कि बड़े पैमाने पर उत्पादन, सरकारी समर्थन और नवाचार के साथ, कोई भी देश किसी भी उद्योग में दुनिया को पिछाड़ सकता है। लेकिन यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। क्या पश्चिमी देश और भारत इस चुनौती का सामना कर पाएंगे? क्या हम एक ऐसे भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं जहां सड़कें चीनी इलेक्ट्रिक कारों से भरी होंगी? ये सवाल हमें बताते हैं कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है।