केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को स्पष्ट किया कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र में जीएसटी 2.0 लागू होने के बाद मुआवजे सेस को लेकर उठे सवालों को वे वित्त मंत्रालय के समक्ष रखेंगे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस बदलाव की ज़िम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है, बल्कि इसमें ऑटो निर्माता कंपनियों को भी समाधान खोजने में सहयोग करना होगा।
गोयल ने फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) द्वारा आयोजित 7वें ऑटो रिटेल कॉन्क्लेव में बोलते हुए डीलरों की समस्याओं और सेस के मुद्दे पर बात की। उन्होंने स्वीकार किया कि नए जीएसटी स्लैब के लागू होने से कई चुनौतियाँ आती हैं। डीलरों के सामने सबसे बड़ी समस्या उन वाहनों के अनसोल्ड इन्वेंट्री पर पड़े सेस बैलेंस की है।
FADA के अध्यक्ष सीएस विनेश्वर ने कहा कि सेस का बोझ ग्राहकों पर जाना चाहिए, लेकिन फिलहाल यह जिम्मेदारी डीलरों पर आ जाती है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला तो डीलरों को त्योहारी सीजन में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, जो ₹2,500 करोड़ से अधिक हो सकता है।
SIAM (सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स) ने भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर सेस के बोझ को कम करने का आग्रह किया है। SIAM अध्यक्ष शैलेश चंद्रा ने कहा कि डीलरों की बुक्स में पड़े सेस बैलेंस का समाधान ज़रूरी है और इस पर जल्द ही सकारात्मक नतीजा आने की उम्मीद है।
FADA ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है कि 21 सितंबर तक के सेस बैलेंस को IGST/CGST क्रेडिट लेजर में ट्रांसफर कर दिया जाए, ताकि इसे नियमित टैक्स लायबिलिटी के खिलाफ एडजस्ट किया जा सके।
गोयल ने डीलरों और ऑटो कंपनियों से एक मजबूत फ्रेमवर्क या चार्टर तैयार करने की अपील की, ताकि कोई भी विदेशी कंपनी भारतीय बाज़ार में आए तो वह यहाँ लंबे समय तक बनी रहे और अचानक बाहर निकलकर डीलरों को मुश्किल में न डाले। उन्होंने फोर्ड और जनरल मोटर्स जैसी कंपनियों के अचानक बाहर निकलने से डीलरों को हुए नुकसान का ज़िक्र किया।
इस संदर्भ में, FADA एक मॉडल डीलर एग्रीमेंट पर काम कर रहा है, जिसमें 24 देशों के 200 से ज़्यादा कॉन्ट्रैक्ट्स का अध्ययन किया गया है। यह एग्रीमेंट होंडा कार्स और एमजी मोटर ने अपनाया है, और कई अन्य कंपनियों द्वारा भी इसे जल्द लागू करने की उम्मीद है।
गोयल ने ACMA (ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन) की सराहना की, यह कहते हुए कि यह संगठन हमेशा रचनात्मक संवाद करता है, जिससे भारत की कॉम्पोनेंट इंडस्ट्री आत्मनिर्भर, प्रतिस्पर्धी और निर्यात बढ़ाने में सक्षम बनी है।