भारत अब उन रेयर अर्थ मेटल्स पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो इलेक्ट्रिक वाहन और रक्षा उपकरणों के लिए आवश्यक हैं। वर्तमान में, भारत अपनी आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। प्राइमस पार्टनर्स द्वारा जारी ‘फ्रॉम एक्सट्रैक्शन टू इनोवेशन’ रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत कैसे घरेलू स्तर पर रेयर अर्थ मैग्नेट का उत्पादन बढ़ा सकता है। यह योजना सरकार के आयात पर निर्भरता कम करने और देश में ही विकास और उत्पादन को बढ़ावा देने के लक्ष्य का हिस्सा है।
रिपोर्ट में रेयर अर्थ मैग्नेट सेक्टर में भारत को आगे बढ़ाने के लिए पांच प्रमुख कदमों का सुझाव दिया गया है। पहला, नियोडिमियम-प्रसीओडिमियम (NdPr) ऑक्साइड और NdFeB मैग्नेट के लिए लंबी अवधि की कीमतों की गारंटी दी जाए। दूसरा, खनिजों से समृद्ध राज्यों में पायलट हब स्थापित किए जाएं। तीसरा, इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) की उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जाए। चौथा, एक राष्ट्रीय मैग्नेट भंडार तैयार किया जाए। पांचवां, नीति आयोग या वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सेल बनाई जाए।
सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई कदम उठाए हैं, जैसे 2024-25 के बजट में कई खनिजों पर कस्टम ड्यूटी हटाना और विशाखापत्तन में IREL का Rare Earth Permanent Magnet (REPM) प्लांट शुरू करना।
चीन रेयर अर्थ मैग्नेट उत्पादन में लगभग 90% हिस्सेदारी रखता है। भारत के पास खनिज भंडार हैं, लेकिन उन्हें निकालने और प्रोसेस करने की क्षमता अभी सीमित है। जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, झारखंड और कर्नाटक में खोज का काम शुरू हो गया है।
भारत ने 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहन प्रवेश और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। प्रत्येक इलेक्ट्रिक वाहन में लगभग 2 किलो NdFeB मैग्नेट लगता है। 2030 तक भारत की मांग 7,000 टन से अधिक हो सकती है, और यह मांग EV तक सीमित नहीं है, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वचालन और रक्षा क्षेत्र भी इसके लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।