भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन हाल ही में वैश्विक संकटों ने इसकी कमजोरियों को उजागर किया है। चीन द्वारा दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध ने उद्योग के सामने गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा कि यह स्थिति ऑटो सेक्टर के लिए एक चेतावनी है, और हमें आवश्यक पार्ट्स का देश में ही उत्पादन करना होगा। SIAM (सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स) के 65वें वार्षिक सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘आज जो चुनौती हम स्थायी मैग्नेट को लेकर झेल रहे हैं, वह एक वेक-अप कॉल है। अब हमें आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ना होगा।’ पिछले कुछ समय में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, खाड़ी देशों और न्यूजीलैंड से मजबूत मांग रही, लेकिन रेड सी संकट और अमेरिका की टैरिफ नीतियों जैसी परिस्थितियों ने सप्लाई चेन को प्रभावित किया। राजेश अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि सरकार समाधान तलाशने के लिए तैयार है, लेकिन ऑटो सेक्टर को खुद पहल करनी होगी और वैश्विक सप्लाई चेन में गहराई से भाग लेना होगा। भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर अपने वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में 15 से 19 प्रतिशत अधिक लागत का सामना करता है। राजेश अग्रवाल ने इस अंतर को कम करने के लिए अनुसंधान और विकास (R&D) में ज्यादा निवेश करने पर जोर दिया। उनके मुताबिक, यदि ऑटो सेक्टर तकनीक में नेतृत्व स्थापित करता है और नवाचार को बढ़ावा देता है, तो यह भारत के लिए विकास की दिशा में गेम चेंजर साबित होगा। 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। विदेश मंत्रालय के सचिव (ER) सुधाकर दलेला ने इस पर बोलते हुए कहा कि घरेलू बाजार मजबूत है, लेकिन वैश्विक उपस्थिति को विस्तार देना भी जरूरी है। खासकर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और विकसित देशों में भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग को अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी।
दुर्लभ पृथ्वी मैग्नेट की कमी: ऑटो सेक्टर के लिए एक चेतावनी
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