अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपने फैसले से दुनिया भर में हलचल मचा दी है. इस बार H-1B वीजा पर 1 लाख डॉलर अतिरिक्त फीस लगाने का निर्णय लिया गया है, जिसके कारण कई कंपनियों की चिंता बढ़ गई है. इन कंपनियों में अमेरिकी और विदेशी दोनों तरह की कंपनियां शामिल हैं. इसके अलावा, ट्रंप के इस फैसले से अमेरिका में नौकरी करने का सपना देखने वाले लोगों के लिए राहें मुश्किल हो गई हैं.
दरअसल, H-1B वीजा उच्च कौशल वाले विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में नौकरी करने के लिए दिया जाता है. अब इस वीजा के लिए लगभग 88 लाख रुपये की फीस बढ़ा दी गई है. यह तय किया गया है कि जब तक 1,00,000 डॉलर का भुगतान नहीं किया जाएगा, तब तक H-1B कर्मचारी अमेरिका में प्रवेश नहीं कर पाएंगे.
बढ़ी हुई फीस अमेज़न, IBM, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर भारी बोझ डालेगी. H-1B वीजा पहले से ही महंगे हैं, जिनकी लागत 1,700 से 4,500 डॉलर के बीच होती है. वीजा जितनी जल्दी चाहिए, उतनी ही अधिक फीस देनी होगी. आमतौर पर कंपनियां H-1B वीजा पर होने वाले खर्च का वहन करती हैं, जिसे व्यापार खर्च माना जाता है. यह आदेश 21 सितंबर से लागू होगा और उन कंपनियों पर सबसे अधिक असर डालेगा जो टेक्नोलॉजी और आईटी सेक्टर में विदेशी कर्मचारियों को अधिक नौकरियां देती हैं.
टेक कंपनियां H-1B वीजा का सबसे अधिक लाभ उठाती हैं. जून 2025 तक, अमेज़न के 10,044 कर्मचारी H-1B वीजा पर थे. TCS दूसरे स्थान पर थी, इसके बाद माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, एप्पल, गूगल, डेलॉइट, इन्फोसिस, विप्रो और टेक महिंद्रा अमेरिका जैसी कंपनियों के हजारों कर्मचारी H-1B वीजा पर हैं. H-1B में टेक कर्मचारियों की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से अधिक है. ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इन कंपनियों ने एक तरफ अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाला और दूसरी तरफ H-1B भर्ती बढ़ाई. आईटी कंपनियों ने H-1B सिस्टम का दुरुपयोग किया है, जिससे अमेरिकी कर्मचारियों को नुकसान हुआ है. इससे कंपनियों को काफी बचत होती है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, H-1B ‘एंट्री-लेवल’ पदों के लिए भुगतान रेगुलर कर्मचारियों की तुलना में 36 प्रतिशत कम होता है. कंपनियां कम श्रम लागत का फायदा उठाने के लिए अपनी आईटी शाखाएं बंद कर देती हैं, अमेरिकी कर्मचारियों को निकाल देती हैं और आईटी नौकरियां विदेशी कर्मचारियों को सौंप देती हैं. आदेश में यह भी कहा गया है कि H-1B कार्यक्रम में कम वेतन वाले कर्मचारियों की अधिक संख्या कार्यक्रम की विश्वसनीयता को कमजोर करती है और अमेरिकी कर्मचारियों की मजदूरी और रोजगार के अवसरों को नुकसान पहुंचाती है, खासकर एंट्री-लेवल पर, उन उद्योगों में जहां ऐसे कम वेतन वाले H-1B कर्मचारी केंद्रित हैं.