भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, बीमा लागत एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गई है। अक्सर, खरीदारों को लगता है कि ईवी की कीमत पेट्रोल या डीजल कारों से कम होने के बावजूद, बीमा प्रीमियम बहुत अधिक है। यहां ईवी बीमा की उच्च लागत के पीछे के छह प्रमुख कारण दिए गए हैं:
1. **बैटरी की उच्च लागत:** ईवी की सबसे महत्वपूर्ण और महंगी घटक बैटरी है, जो वाहन की कुल लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। बैटरी को नुकसान होने की स्थिति में, प्रतिस्थापन लागत लाखों रुपये तक हो सकती है, जिससे बीमा कंपनियां अधिक प्रीमियम चार्ज करने के लिए प्रेरित होती हैं।
2. **स्पेयर पार्ट्स की सीमित उपलब्धता:** ईवी अभी भी एक नई तकनीक है, और उनके स्पेयर पार्ट्स पेट्रोल और डीजल कारों की तरह आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। खराब हुए पुर्जों को प्राप्त करने और मरम्मत करने में अधिक खर्च आता है, जिससे बीमा लागत में वृद्धि होती है।
3. **उच्च तकनीक सुविधाएँ और मरम्मत लागत:** ईवी उन्नत सुविधाओं से लैस होते हैं, जैसे ADAS (एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम)। इन सुविधाओं की मरम्मत बहुत महंगी होती है, जो बीमा कंपनियों को उच्च जोखिम मूल्यांकन करने के लिए मजबूर करती है।
4. **दुर्घटना का डर और बैटरी में आग लगने का जोखिम:** बैटरी में आग लगने की घटनाओं के कारण, बीमा प्रदाताओं के लिए ईवी एक उच्च जोखिम वाले क्षेत्र हैं। ऐसे मामलों में पूरी गाड़ी को बदलने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे बीमा लागत बढ़ जाती है।
5. **पुनर्विक्रय मूल्य को लेकर अनिश्चितता:** ईवी की पुनर्विक्रय वैल्यू अभी भी स्थापित नहीं हुई है, खासकर बैटरी की उम्र और प्रदर्शन को लेकर। यह अनिश्चितता बीमा कंपनियों को खुद को सुरक्षित रखने के लिए अधिक प्रीमियम चार्ज करने के लिए प्रेरित करती है।
6. **ईवी की शुरुआती लागत अधिक होना:** भले ही सरकार सब्सिडी देती है, लेकिन ईवी की शुरुआती लागत पेट्रोल-डीजल कारों से अधिक होती है। महंगी कार का मतलब है महंगा बीमा।
हालांकि, यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जैसे-जैसे ईवी बाजार का विस्तार होगा, बीमा प्रीमियम धीरे-धीरे कम होंगे। सरकार भी ग्रीन मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए टैक्स रियायतें देने पर विचार कर रही है।