क्या आप जानते हैं कि ‘Fortyfourwa’ या ’44’ का कनेक्शन मशहूर अभिनेता मनोज बाजपेयी से है? बिहार के पश्चिम चंपारण में 23 अप्रैल 1969 को जन्मे मनोज बाजपेयी एक किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई एक झोपड़ी वाले स्कूल में की और फिर बेतिया के ख्रिस्ट राजा हाई स्कूल से आगे की शिक्षा ली। 17 साल की उम्र में अभिनय के जुनून को पूरा करने के लिए वे दिल्ली आ गए।

**’Fortyfourwa’ उपनाम का रोचक इतिहास**
मनोज बाजपेयी के युवावस्था से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है, जिसने उन्हें ‘Fortyfourwa’ जैसा अनोखा उपनाम दिलाया। कक्षा 12 में पढ़ते समय, उन्हें एक रोल नंबर 44 पर क्रश हो गया था। जब भी शिक्षक ’44, उपस्थित’ पुकारते थे, तो वे शरमा जाते थे। उनके दोस्तों ने इसी बात पर उन्हें ‘Fortiforva’ कहकर चिढ़ाना शुरू कर दिया, जो ’44’ का ही एक मज़ाकिया रूप था।
**संघर्ष और NSD से तीन बार रिजेक्शन**
अभिनय की दुनिया में मनोज बाजपेयी का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) के लिए तीन बार आवेदन किया, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इन लगातार रिजेक्शन से वे बहुत टूट गए थे। उन्होंने खुद बताया है कि इस दौर में उन्हें आत्मघाती विचार भी आने लगे थे। वे कहते थे कि वे इतने गहरे अवसाद में चले गए थे कि उन्हें समझ नहीं आता था कि वे अपने प्रियजनों का सामना कैसे करेंगे।
अपने शब्दों में, वे खुद को बाहरी व्यक्ति महसूस करते थे और बेहतर तालमेल बिठाने के लिए उन्होंने खुद ही अंग्रेजी और हिंदी सीखी। उनके दोस्तों ने इस मुश्किल वक्त में उनका खूब साथ दिया। बाद में, NSD में छात्र के तौर पर एडमिशन न मिलने के बावजूद, उन्हें अपने दृढ़ संकल्प और अभिनय के प्रति प्रेम के कारण वहां पढ़ाने का प्रस्ताव मिला।
**मुंबई में संघर्ष और अभिनय का शिखर**
NSD की मुश्किलों के बाद, मनोज बाजपेयी मुंबई आ गए, जहाँ उन्हें और भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वे पांच दोस्तों के साथ एक चॉल में रहते थे, कमाई के लिए संघर्ष करते थे और कई अभिनय के अवसर भी गंवा बैठे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। थिएटर और छोटे-छोटे किरदारों से उन्होंने धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाई।
उनकी असली सफलता ‘सत्या’ (1998) फिल्म से मिली, जिसमें उन्होंने खतरनाक गैंगस्टर ‘भिकू म्हात्रे’ का किरदार निभाया। इस फिल्म को आलोचकों ने खूब सराहा और इसने उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे सम्मानित अभिनेताओं में से एक के रूप में स्थापित किया।
**बिहार से पद्मश्री तक का सफर**
सालों से, बाजपेयी ने अपने शानदार अभिनय के दम पर कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के सम्मान में, उन्हें 2019 में पद्मश्री से नवाजा गया।
अपनी प्रसिद्धि और सफलता के बावजूद, ‘Fortiforva’ या ‘Fortyfourwa’ जैसी कहानियाँ उनके विनम्र जड़ों और उस लंबे सफर को दर्शाती हैं, जो उन्होंने बिहार के एक छोटे से गांव से लेकर एक राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित अभिनेता बनने तक तय किया।





