ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बॉलीवुड अब नया रूप ले रहा है। पुरानी ‘नाच-गाना-प्यार’ वाली शैली धीरे-धीरे डिजिटल प्लेटफॉर्म से गायब हो रही है। अब, यहां स्ट्रीम होने वाली फिल्में न केवल दिल को छूती हैं, बल्कि दिमाग को भी शांत करती हैं। इसी क्रम में एक और फिल्म आई है, जिसका नाम ‘तेहरान’ है।
‘तेहरान’ सुनते ही, क्या ईरान-इज़राइल की कहानी दिमाग में आती है? या यह सिर्फ एक नाम है? जॉन अब्राहम को हमने बाइक पर स्टंट करते और देश के लिए जान देते हुए देखा है। लेकिन इस फिल्म में, वह सिर्फ एक्शन नहीं, कुछ और भी करते दिखते हैं।
तो ‘तेहरान’ में खास क्या है? क्या यह सिर्फ एक मसाला फिल्म है या इसमें देखने लायक कुछ है? क्या यह आपको कुर्सी से बांधे रखेगी या आपका मन ऊब जाएगा? आइए, इन सवालों के जवाब ढूंढते हैं और ‘तेहरान’ परतों को खोलते हैं।
फिल्म की कहानी 2012 की वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है। उस साल, नई दिल्ली में इजरायली राजनयिकों पर बम हमला हुआ था। एक कार में धमाका हुआ, जिसमें एक स्टाफ सदस्य, एक स्थानीय कर्मचारी और दो राहगीर घायल हो गए। इसी तरह का एक हमला जॉर्जिया की राजधानी तिब्लिसी में भी हुआ था, हालाँकि वह सफल नहीं हुआ।
फिल्म इसी कहानी से शुरू होती है। यह बताती है कि कैसे ईरान और इज़राइल भारत को अपनी गुप्त लड़ाई में मोहरे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। भारत को इस लड़ाई में ‘दुखी दर्शक’ की तरह रहना पड़ता है। लेकिन भारत चुप रहने वालों में से नहीं है, और यहीं से हमारे हीरो एसीपी राजीव कुमार की एंट्री होती है। राजीव कुमार (जॉन अब्राहम) एक ‘पागल’ अफसर हैं। उनके अंदर एक आग है, जो सही और गलत के बीच की रेखा को धुंधला कर देती है। इस ‘पागल’ अफसर का पागलपन क्या कमाल दिखाएगा? यह जानने के लिए आपको ज़ी5 पर ‘तेहरान’ देखनी होगी।
अगर आप सोच रहे हैं कि यह एक एक्शन फिल्म है, तो आप गलत हैं। ‘तेहरान’ आपको सिर्फ एक्शन नहीं दिखाती, बल्कि आपको कहानी से जोड़ती है। फिल्म की कहानी इतनी तेज है कि आपकी सांसें फूल जाएंगी। लेकिन, फिल्म कहानी पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ती। हर सीन, हर डायलॉग आपको अगले सीन के लिए तैयार करता है।
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह उलझे हुए राजनीतिक मुद्दों को आसानी से समझाती है। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे हल्के-फुल्के मूड में नहीं देखा जा सकता। इसे देखने के लिए आपको ध्यान देना होगा। यह ‘सिर्फ एक थ्रिलर नहीं, बल्कि एक बहस है’, जो सीमाओं पर होने वाले झगड़े और हिंसा के बीच मानवता की बात करती है। यह फिल्म दिमाग और दिल दोनों को जीत लेती है।
निर्देशक अरुण गोपालन की जितनी तारीफ की जाए कम है। उन्होंने फिल्म में जान डाल दी है। ‘तेहरान’ का हर सीन अपने आप में एक कहानी कहता है। निर्देशक ने दर्शकों की समझ पर भरोसा किया है, इसलिए फिल्म में अनावश्यक मसाला नहीं डाला गया है।
फिल्म में, जब स्क्रीन पर एक्शन चल रहा होता है, गोलियाँ चल रही होती हैं, तो बैकग्राउंड में एक धीमी और शांत धुन बजती है। इस तरह का निर्णय लेना एक रचनात्मक जोखिम था। लेकिन निर्देशक ने यह जोखिम उठाया और यह सफल रहा।
इस फिल्म में जॉन अब्राहम को सिर्फ एक्शन हीरो समझना बड़ी गलती होगी। उनका किरदार राजीव कुमार सिर्फ मुक्के मारने और गोलियाँ चलाने वाला हीरो नहीं है। वह एक टूटा हुआ इंसान है, जिसके अंदर गुस्सा, दर्द और एक मिशन को पूरा करने की जिद है। जॉन ने इस किरदार को शारीरिकता के साथ-साथ अपनी आंखों और भावों से भी जीवंत कर दिया है। उनके चेहरे पर गुस्सा और दर्द साफ दिखता है।
जॉन के अलावा नीरू बाजवा और अन्य कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है। सबने अपने किरदारों को मजबूती से निभाया है, जिससे कहानी कहीं से भी कमजोर नहीं पड़ती। हर किरदार अपनी जगह पर फिट बैठता है।
यदि आप एक तेज-तर्रार और दिमाग को झकझोर देने वाली थ्रिलर देखना चाहते हैं, जो सच्ची घटनाओं से प्रेरित हो, तो यह फिल्म आपके लिए है। लेकिन यदि आप हल्की-फुल्की कॉमेडी या रोमांटिक फिल्म चाहते हैं, तो यह आपके लिए नहीं है।
अंत में, ‘तेहरान’ एक ऐसी फिल्म है जिसे देखकर आप सिर्फ टाइम पास नहीं कर सकते। यह एक ऐसा अनुभव है जिसका स्वाद लंबे समय तक आपके ज़ेहन में रहेगा। यह फिल्म आपको एक्शन के साथ जज़्बातों का ऐसा कॉकटेल देती है, जिसे पीने की हिम्मत चाहिए। यदि आप में वो हिम्मत है और आप ऐसी फिल्म की तलाश में हैं जो आपको मनोरंजन के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करे, तो जॉन अब्राहम की ‘तेहरान’ आपके लिए है।