हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का पर्व अत्यंत पवित्र माना जाता है, जो भक्ति, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है। यह देवउठनी एकादशी के बाद मनाया जाने वाला एक विशेष अनुष्ठान है, जिसमें पवित्र तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से कराया जाता है। इस शुभ विवाह से विवाह का मौसम शुरू होता है और घरों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
**तुलसी विवाह 2025 की तिथि और समय**
पंचांग के अनुसार, साल 2025 में तुलसी विवाह का पर्व रविवार, 2 नवंबर को मनाया जाएगा। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि इस अनुष्ठान के लिए सबसे शुभ मानी जाती है।
* **द्वादशी तिथि प्रारंभ**: 2 नवंबर 2025, सुबह 07:31 बजे
* **द्वादशी तिथि समाप्त**: 3 नवंबर 2025, सुबह 05:07 बजे
कुछ भक्त देवउठनी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा के बीच के पांच दिनों में भी तुलसी विवाह करते हैं, क्योंकि यह अवधि विशेष फलदायी मानी जाती है।
**तुलसी विवाह का आध्यात्मिक महत्व**
तुलसी विवाह को देवी वृंदा (तुलसी का ही एक रूप) का भगवान विष्णु से विवाह माना जाता है। इस अनुष्ठान का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है और इसे कन्यादान के समान पुण्यदायक बताया गया है। मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से घर में सुख-समृद्धि, शांति और वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। जिन दंपतियों की बेटियां नहीं होतीं, वे भी इस पर्व को करके पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
**पूजा की विधि**
तुलसी विवाह के दिन, तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और शालिग्राम जी को दूल्हे के रूप में तैयार किया जाता है।
1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
2. सजाए हुए स्थान पर तुलसी का पौधा स्थापित करें।
3. रंगोली बनाएं और फूलों, आम के पत्तों व केले के तनों से मंडप सजाएं।
4. तुलसी के गमले के पास शालिग्राम जी को स्थापित करें।
5. पंचामृत और गंगाजल से दोनों को स्नान कराएं।
6. तुलसी जी को लाल चुनरी ओढ़ाएं और शालिग्राम जी को वस्त्र पहनाएं।
7. फूल, मिठाई, फल और धूप-दीप अर्पित करें।
8. विवाह मंत्रों का जाप करते हुए प्रतीकात्मक विवाह संपन्न कराएं।
9. तुलसी और शालिग्राम जी की सात परिक्रमा करें।
10. आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
इस अनुष्ठान से घर की नकारात्मकता दूर होती है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
**क्षेत्रीय मान्यताएं**
भारत के विभिन्न हिस्सों में तुलसी विवाह को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के वृंदावन और मथुरा में यह भव्यता से होता है। बिहार के सोनौजा गांव में तीन दिनों तक यह उत्सव चलता है। महाराष्ट्र में विशेष रीति-रिवाज और मंत्रोच्चार के साथ विवाह संपन्न होता है। सौराष्ट्र में शालिग्राम जी की बारात निकाली जाती है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे ‘तुलसी कल्याणम’ कहते हैं, जहां आंवले की डाली का प्रयोग होता है।
तुलसी विवाह 2025, 2 नवंबर को, प्रकृति और दिव्यता के मिलन का प्रतीक है और शुभ विवाहों के मौसम की शुरुआत का संकेत देता है।






