एक समय था जब दिल्ली में 15 अगस्त 2024 को झंडा कौन फहराएगा, यह सवाल उठा था। उस समय, राज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद थे। अदालत ने उन्हें हटाने में असमर्थता व्यक्त करते हुए देश के संविधान और कानून के प्रावधानों का हवाला दिया, कि बिना दोषी साबित हुए या सजा मिले, किसी का इस्तीफा नहीं मांगा जा सकता।
इस बिल का विचार कैसे आया?
केंद्र सरकार और उसके वरिष्ठ मंत्रियों के मन में यह सवाल उठा कि आखिर संविधान निर्माताओं ने ऐसी स्थिति के लिए कानून के बारे में क्यों नहीं सोचा। काफी विचार-विमर्श के बाद, इस निर्णय पर पहुंचा गया कि राजनीति में नैतिकता का स्थान बीते दिनों की बात होती जा रही है और राजनेताओं में लोक लाज का महत्व कम होता जा रहा है।
समाज के हर पहलू में गिरावट आई है, तो राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। एक मंत्री ने कहा कि नैतिकता की जगह अब निर्लज्जता लेती जा रही है। ऐसे में, एक ऐसे कानून की आवश्यकता है जिससे दिल्ली जैसी स्थिति दोबारा न बन सके।
बुधवार को, संविधान के 130वें संशोधन को लोकसभा में पेश करते हुए, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि उन पर भी मुकदमा चला और वह जेल भी गए, लेकिन जब जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया और जब तक उन पर चल रहे मुकदमों में उनका दोष सिद्ध नहीं हो गया, तब तक उन्होंने सरकार में कोई पद नहीं लिया।
विपक्षी दलों के मन में कई आशंकाएं
हालांकि, इस संविधान संशोधन को लेकर विपक्षी दलों के मन में कई आशंकाएं हैं। लोकसभा में बिल पेश करते समय एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस से मनीष तिवारी, केसी वेणुगोपाल और समाजवादी पार्टी से धर्मेंद्र यादव ने विपक्षी दलों के खिलाफ इस बिल के दुरुपयोग की आशंका जताई। विपक्षी दलों का कहना है कि कानून बनने पर केंद्रीय एजेंसियों का गलत इस्तेमाल कर विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को परेशान किया जा सकता है और उनके मुख्यमंत्रियों का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा सकता है।
संसद में जबरदस्त हंगामा
इस बिल के विरोध में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के तमाम दलों ने लोकसभा के वेल में पहुंचकर जमकर हंगामा किया, बिल की प्रतियां फाड़ीं और धक्का-मुक्की की नौबत आ गई। लेकिन बिल पेश हुआ। गृह मंत्री अमित शाह ने इस पर विस्तृत चर्चा कर सभी राजनीतिक दलों की राय लेने के लिए जेपीसी को रेफर करने का अनुरोध किया। अगले एक-दो दिनों में सभी पार्टियों से विचार-विमर्श करके लोकसभा अध्यक्ष 31 सदस्यों की एक जेपीसी बनाएंगे। इस जेपीसी को संसद के आगामी सत्र के पहले सप्ताह के आखिरी दिन तक अपनी रिपोर्ट लोकसभा में सौंपने को कहा जाएगा।
बहरहाल, यदि इस बिल के राजनीतिक इस्तेमाल के विपक्षी दलों में डर का समाधान केंद्र सरकार द्वारा कर दिया जाता है, तो निश्चित रूप से इस बिल को लाने के पीछे की मंशा पर सवाल उठाना मुश्किल होगा। जिस तरह से दिल्ली के मुख्यमंत्री के मामले में अदालत ने लाचारी दिखाई थी, ऐसे में यह बिल मौजूदा समय की जरूरत मानी जा सकती है।