
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने ऐतिहासिक दारुल उलूम देवबंद इस्लामिक मदरसा का दौरा किया, जहां उनका भव्य स्वागत हुआ। उन्होंने भारत-अफगानिस्तान संबंधों के और मजबूत होने की उम्मीद जताई। यह यात्रा भारत में उनके छह दिवसीय प्रवास का हिस्सा है और इसे बदलते क्षेत्रीय समीकरणों के बीच एक महत्वपूर्ण धार्मिक और कूटनीतिक कदम माना जा रहा है।
**दारुल उलूम देवबंद में गर्मजोशी भरा स्वागत**
विदेश मंत्री मुत्तकी अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ सड़क मार्ग से दिल्ली से देवबंद पहुंचे। उनका स्वागत दारुल उलूम के वाइस-चांसलर मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने पुष्प वर्षा के बीच किया। मदरसा में सैकड़ों छात्रों और स्थानीय लोगों की भीड़ उमड़ी, हालांकि सुरक्षा कर्मियों ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए थे।
पत्रकारों से बात करते हुए, मुत्तकी ने गर्मजोशी भरे स्वागत और स्थानीय लोगों द्वारा दिखाए गए स्नेह के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ‘मैं ऐसे भव्य स्वागत और यहां के लोगों द्वारा दिखाए गए स्नेह के लिए आभारी हूं। मुझे उम्मीद है कि भारत-अफगानिस्तान के संबंध और आगे बढ़ेंगे।’
**धार्मिक और कूटनीतिक महत्व**
मुत्तकी की देवबंद यात्रा को एक प्रमुख धार्मिक और कूटनीतिक पहल के रूप में देखा जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि यह पाकिस्तान के देवबंदी इस्लाम के मुख्य संरक्षक होने के दावों को चुनौती देता है। देवबंद का दौरा करके, मुत्तकी ने यह संकेत दिया है कि तालिबान की धार्मिक जड़ें भारत से जुड़ी हैं, जो तालिबान कूटनीति में एक संभावित बदलाव और पाकिस्तान पर निर्भरता में कमी का संकेत देता है।
**दारुल उलूम देवबंद का ऐतिहासिक महत्व**
1866 में स्थापित, दारुल उलूम देवबंद दक्षिण एशिया के सबसे प्रभावशाली इस्लामी संस्थानों में से एक है। इस मदरसे ने ऐसे विद्वान और नेता तैयार किए हैं जो इस्लामी शिक्षा और शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तालिबान दारुल उलूम को एक आदर्श संस्थान मानते हैं, और इसके स्नातकों को अक्सर अफगान सरकारी भूमिकाओं में प्राथमिकता दी जाती है। वर्तमान में, लगभग 15 अफगान छात्र देवबंद में पढ़ रहे हैं, हालांकि 2000 के बाद सख्त वीजा नियमों के कारण छात्रों की संख्या में कमी आई थी।
**द्विपक्षीय जुड़ाव और भविष्य की योजनाएं**
मुत्तकी ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर जोर देते हुए कहा, ‘हम नए राजनयिक भेजेंगे, और मुझे उम्मीद है कि आप लोग भी काबुल आएंगे। निकट भविष्य में ये दौरे अक्सर हो सकते हैं।’ उन्होंने ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास पर भारत और अफगानिस्तान के बीच संभावित सहयोग पर भी प्रकाश डाला, हालांकि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख किया।






