यह सिर्फ चंद शब्द नहीं बल्कि एक सच्चाई है… लेकिन अक्सर इन बेटियों की सुरक्षा माता-पिता के लिए चिंता का विषय बन जाती है। जैसे ही बेटी घर से बाहर निकलती है, माता-पिता चिंतित हो जाते हैं। मैं अपनी बात करूं तो जब रात में 12 बजे ऑफिस से घर जाती हूं तो हर रोज मम्मी फोन करती हैं और पूछती हैं कि अच्छे से पहुंच गईं। कई बार मैं झल्ला भी जाती हूं कि आप रोज एक ही बात पूछती हैं। लेकिन बाद में यह एहसास भी होता है कि मम्मी मेरे लिए परेशान हैं, वह देर रात तक मेरे लिए ही तो जागती हैं, उन्हें मेरी फिक्र है और यह फिक्र लाजमी भी है क्योंकि मैं घर से दूर हूं। यह बात सिर्फ मेरी मां की नहीं बल्कि हर उस मां की होती है जिनकी बेटियां काम के सिलसिले में या किसी और वजह से रात में बाहर जाती हैं।
पिछले काफी समय से ऐसी कई दिल दहलाने वाली घटनाएं सामने आई हैं, जिनकी वजह से माता-पिता की चिंता और भी बढ़ गई है। किसी भी देश में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा रहता है। जब भी कोई महिला घर के बाहर निकलती है तो कई बार मन में उसकी सुरक्षा की बात जरूर आती है। खासतौर पर जब कोई लड़की किसी दूसरे शहर में नौकरी या पढ़ाई के लिए जाती है तो परिवार को उसकी सलामती की हमेशा फिक्र रहती है। सड़क हो, बस हो, मेट्रो हो या बाजार हो, इन जगहों पर अक्सर महिलाओं के साथ कई बार अभद्रता की जाती है, जिसकी वजह से कई बार उन्हें परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। कई महिलाएं या लड़कियां इस तरह की छेड़खानी का विरोध भी करती हैं तो कई ऐसी भी होती हैं कि शर्मिंदगी के चलते खामोश रह जाती हैं।
भारत की बात करें तो रात हो या दिन, महिलाओं के साथ ऐसी कई वारदातें सामने आती रहती हैं जिससे महिला सुरक्षा पर सवाल उठते रहते हैं। यही वजह है कि माता-पिता अपनी बेटी को बाहर भेजने से पहले कई बार सोचते हैं। घर, स्कूल-कॉलेज, पब्लिक ट्रांसपोर्ट या फिर ऑफिस में महिलाओं को अक्सर घूरती नजरों और अनचाहे स्पर्श का सामना करना पड़ता है। इस बीच महिला सुरक्षा को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। आइये जानते है इस रिपोर्ट के बारे में विस्तार से।
महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट और सूचकांक ‘नारी 2025’ ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में जो आंकड़े उजागर किए हैं वो काफी डरावने हैं। रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में 40% महिलाएं अपने शहरों में ‘ज्यादा सुरक्षित नहीं’ या ‘असुरक्षित’ महसूस करती हैं। वहीं रिपोर्ट में बताया गया है कि शाम ढलने के बाद, खराब रोशनी और सुरक्षा के अभाव के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ जाती हैं।
इस अध्ययन में देश के सभी राज्यों के 31 शहरों की 12,770 महिलाओं की आवाज को शामिल किया गया है और महिलाओं की सुरक्षा में सुधार के लिए डेटा-आधारित ढांचा प्रदान किया गया है। निष्कर्षों के अनुसार, रांची, श्रीनगर, कोलकाता, दिल्ली, फरीदाबाद, पटना और जयपुर को भारत में महिलाओं के लिए सबसे कम सुरक्षित शहरों के रूप में स्थान दिया गया है।
NARI सूचकांक में दिल्ली और फरीदाबाद शीर्ष पांच असुरक्षित शहरों में शामिल हैं, जहां करीब 42% महिलाओं ने बताया कि वो असुरक्षित महसूस करती हैं। रांची में यह आंकड़ा और भी ज़्यादा था। यहां की 44% महिलाओं ने असुरक्षित महसूस करने की बात कही।
जबकि पूर्वी शहर कोहिमा, जहां 80 प्रतिशत से ज़्यादा महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं, को देश में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह बताया गया। महिलाओं के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित बताए गए अन्य शहरों में विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, आइज़ोल, गंगटोक, ईटानगर और मुंबई शामिल हैं, जहां लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं।
भारत में बड़ी संख्या में महिलाओं को सड़कों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसमें घूरना, छेड़खानी, अश्लील टिप्पणियां और शारीरिक स्पर्श शामिल हैं। हम में से कई लोगों ने यकीनन कहीं न कहीं इन चीजों का सामना किया होगा। राह चलते कई बार गलत तरह की फब्तियां या गंदी नजर से पुरुषों का घूरना, हर लड़की को परेशान करता है। इसकी वजह से कई छात्राएं स्कूल छोड़ रही हैं या कामकाजी महिलाएं अपनी नौकरी छोड़ रही हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 7 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि 2024 में उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और 18-24 साल की आयु की युवा महिलाओं में यह जोखिम सबसे ज़्यादा था। इसकी तुलना में, एनसीआरबी (NCRB) के 2022 के आंकड़े महिलाओं के खिलाफ अपराध के केवल 0.07% मामलों की रिपोर्ट करते हैं।
अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, खराब रोशनी और अकुशल सार्वजनिक परिवहन की वजह से महिलाएं सार्वजनिक स्थानों को असुरक्षित मानती हैं। यह धारणा सामाजिक दृष्टिकोण से और भी बढ़ जाती है, जो अक्सर उत्पीड़न के लिए पीड़ितों को ही दोषी ठहराता है। हम कई बार यह बात सुनते हैं कि किसी लड़की ने छोटे कपड़े पहने इसलिए उनके साथ छेड़खानी हुई, या कोई लड़की सज संवरकर बाहर निकली या रात के समय अकेले बाहर निकली इसलिए उसके साथ गलत हुआ। यहां हर हाल में लड़की को ही पुरुषों के नापाक इरादों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
एनएआरआई 2025 रिपोर्ट में ऐसे आंकड़े सामने आए हैं जो एनसीआरबी के आधिकारिक आंकड़े पेश नहीं कर सकते। यह महिलाओं के साथ होने वाले हर जुल्म और दुर्व्यवहार को उजागर करते हैं। कई बार महिलाएं अपने साथ हुई अभद्रता की शिकायत दर्ज नहीं करातीं लेकिन एनएआरआई की रिपोर्ट में उन महिलाओं के बारे में भी जानकारी दी गई है। कई महिलाएं उत्पीड़न की घटनाओं की रिपोर्ट अधिकारियों को नहीं देतीं क्योंकि उन्हें आगे और उत्पीड़न या सामाजिक कलंक का डर रहता है। केवल 22 प्रतिशत महिलाएं ही अपने अनुभवों की रिपोर्ट अधिकारियों को देती हैं, वहीं केवल 16 प्रतिशत मामलों में ही कार्रवाई की जाती है।
वर्क प्लेस में महिलाओं के साथ ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन शर्म या डर की वजह से वह इस बारे में कई बार खुलकर बात नहीं कर पातीं। ऐसे में वर्क प्लेस पर महिलाओं के साथ होने वाली इन घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘विशाखा गाइडलाइंस’ जारी की थी। हालांकि, आज भी कई महिलाएं इस गाइडलाइंस से अनजान हैं, जिसकी वजह से वह इसका फायदा नहीं उठा पाती हैं। एनएआरआई रिपोर्ट के मुताबिक 53% महिलाओं को यह स्पष्ट नहीं है कि उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम (POSH) नीति है या नहीं।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया किशोर राहतकर ने ‘नारी 2025’ लॉन्च किया। यह रिपोर्ट पीवैल्यू एनालिटिक्स द्वारा संचालित और ग्रुप ऑफ इंटेलेक्चुअल्स एंड एकेडमिशियंस (जीआईए) द्वारा प्रकाशित की गई थी। अध्यक्ष का कहना है ‘नारी 2023 का शुभारंभ हमारे शहरों में महिलाओं की सुरक्षा चिंताओं को समझने की दिशा में एक कदम आगे है। राष्ट्रीय महिला आयोग में हमारी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि हर महिला घर पर, काम पर, सार्वजनिक स्थानों पर और ऑनलाइन सुरक्षित महसूस करे। यह रिपोर्ट महिलाओं की वास्तविक आवाज को सामने लाती है और पूरे भारत में महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित और सहायक स्थान बनाने के लिए नीति निर्माताओं और संस्थानों के साथ काम करने में मदद करेगी’।
वहीं पीवैल्यू एनालिटिक्स के एमडी प्रहलाद राउत का कहना है कि ‘नारी 2025 के साथ, हमारा लक्ष्य यह स्पष्ट तस्वीर देना है कि महिलाएं अपने दैनिक जीवन में सुरक्षा का अनुभव कैसे करती हैं। यह रिपोर्ट सभी राज्यों को कवर करते हुए 31 शहरों की 12,700 से अधिक महिलाओं के विचारों पर आधारित है और उनकी रोजमर्रा की वास्तविकताओं को दर्शाती है। हमें उम्मीद है कि ये निष्कर्ष सरकारों, कॉरपोरेट्स और समुदायों को प्रधानमंत्री के विकसित भारत 2047 के विजन के अनुरूप महिला सुरक्षा में सुधार के लिए केंद्रित कदम उठाने के लिए मार्गदर्शन करेंगे’। एनएआरआई 2025 रिपोर्ट नीति निर्माताओं, सरकारों, निगमों और नागरिक समाज को महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित और समावेशी शहर बनाने की दिशा में काम करने में मदद करने के लिए एक वार्षिक बेंचमार्क के रूप में काम करेगी।