बिहार की राजनीति में इस समय सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे या फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कमान संभालेगी। 14 नवंबर को मतगणना के बाद यह तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज हो गई हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 16 अक्टूबर को कहा था कि चुनाव के बाद विधायक दल तय करेगा कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। इसके बाद से यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) जीता, तो भाजपा, जदयू के नेतृत्व वाले गठबंधन में बड़ा सहयोगी होने के नाते, नीतीश कुमार को दरकिनार कर मुख्यमंत्री पद का दावा कर सकती है।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह परिदृश्य बहुत कम संभावित है। वे इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बताते हैं।
**सीधा मुकाबला: जदयू बनाम राजद**
बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) यानी जदयू 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वीआईपी और वाम दल) ने इनमें से पांच सीटों पर उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं, जिससे यह संख्या 96 हो जाती है। इन 96 सीटों में से 59 सीटों, यानी 61%, पर सीधे तौर पर जदयू और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले राजद के बीच मुकाबला है। वाम दलों को शामिल करने पर यह आंकड़ा 71 सीटों (74%) तक पहुंच जाता है।
इन 71 विधानसभा क्षेत्रों से ऐसे विधायक चुने जाने की उम्मीद है जो सीधे तौर पर भाजपा के साथ संरेखित नहीं होंगे। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एस एम दिवाकर बताते हैं कि बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के दौर से ही भाजपा के प्रभाव और स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए सीधे मुकाबले की रणनीति अपनाई जाती रही है। उनका कहना है कि यह रणनीति भाजपा को दबाव बनाने से रोकती है।
2020 के चुनावों में भी इन्हीं 71 सीटों पर जदयू और राजद आमने-सामने थे। राजद ने इनमें से 48 सीटें जीतीं, जिससे तेजस्वी की जदयू के खिलाफ 67.6% की स्ट्राइक रेट रही। अपने 75 में से 48 मुकाबले जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ जीते। उस समय महागठबंधन बहुमत से मात्र 12 सीटें पीछे रह गया था, कुल 110 सीटें जीतीं। वहीं, जदयू सीधे मुकाबले में राजद से केवल 21 सीटें ही जीत पाई, जो 29% की स्ट्राइक रेट थी।
इन 71 सीटों में से 13 पर जदयू को चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की मौजूदगी के कारण हार का सामना करना पड़ा था। इस बार, दोनों नेता एनडीए के साथ हैं, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
**चिराग और कुशवाहा से जदयू को बढ़त**
2020 में, एनडीए ने 115 जदयू सीटों, 110 भाजपा सीटों, सात जीतन राम मांझी-नीत हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और 11 मुकेश सहनी-नीत वीआईपी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। परिणाम आए 43 जदयू को, 74 भाजपा को और हम व वीआईपी को चार-चार सीटें मिलीं।
चिराग पासवान ने 2020 में निर्दलीय चुनाव लड़ा, जिससे एनडीए को 42 सीटों का नुकसान हुआ। जदयू को सबसे ज्यादा 36 सीटों का नुकसान हुआ, वीआईपी ने चार, भाजपा और हम ने एक-एक सीट गंवाई।
उपेंद्र कुशवाहा भी अलग से चुनाव लड़े, जिससे जदयू को पांच सीटें गंवानी पड़ीं। कुल मिलाकर, इन दोनों नेताओं के कारण जदयू को लगभग 41 सीटों का नुकसान हुआ।
अब चिराग और कुशवाहा दोनों एनडीए में हैं, तो जदयू इन 41 विधानसभा क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन कर सकती है। दिवाकर ने रेखांकित किया कि उनके शामिल होने से दलित और कुशवाहा (कोइरी) मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे इस साल जदयू की सीटों की संख्या बढ़ सकती है।
**लोजपा (आरवी) की 13 खोई हुई सीटें**
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) या लोजपा (आरवी) एनडीए की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है, जो 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। मीडिया रिपोर्टों से पता चला था कि भाजपा ने चिराग को अधिक सीटें देकर नीतीश पर दबाव बनाने की कोशिश की थी। नीतीश कथित तौर पर कुछ सीट आवंटन से नाखुश थे, लेकिन बाद में समायोजन किया गया।
लोजपा (आरवी) को आवंटित 29 सीटों में से, एनडीए ने 2020 में 26 सीटों पर हार का सामना किया था। इन 13 सीटों पर एनडीए पिछले 15 वर्षों में, जिसमें 2010, 2015 और 2020 के चुनाव शामिल हैं, जीत हासिल नहीं कर पाया है।
कुल मिलाकर, डेटा और विशेषज्ञों के विश्लेषण के अनुसार, यह संभावना बहुत कम है कि भाजपा नीतीश को दरकिनार कर अपना मुख्यमंत्री बना सके। यदि भाजपा नीतीश को हटाने की कोशिश करती है, तो उनके पास राजद के साथ गठबंधन का विकल्प अभी भी खुला रह सकता है।