बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है, और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने गृह जिले नालंदा में अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं। हाल के हफ्तों में, उन्होंने नालंदा की सभी सात विधानसभा सीटों पर ताबड़तोड़ रोड शो और रैलियां की हैं। 74 साल की उम्र में, नीतीश कुमार अपने गढ़ को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, जो पहले कभी उनकी अजेयता का प्रतीक माना जाता था।
**समर्थन में आई कमी: आंकड़े क्या कहते हैं?**
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि नालंदा में नीतीश कुमार के प्रभुत्व में धीरे-धीरे कमी आई है। हालांकि उनकी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) या जद (यू), अभी भी सीटें जीत रही है, लेकिन जीत का अंतर काफी कम हो गया है। पिछले चार विधानसभा चुनावों में, जद (यू) के जीत के मार्जिन में भारी गिरावट देखी गई है। 2005 में जहां यह औसतन 21.17 प्रतिशत था, वहीं 2020 तक यह घटकर महज 9.06 प्रतिशत रह गया। यह रुझान दिखाता है कि एक समय का अभेद्य किला अब एक कठिन चुनावी रणभूमि बन गया है।
**स्थानीय लोगों की राय: बदलाव की आहट?**
नालंदा के कुछ निवासियों का मानना है कि मुख्यमंत्री का पुराना दबदबा अब नहीं रहा। उनका कहना है कि शुरुआती दौर में उन्होंने जनता के लिए खूब काम किया, लेकिन अब उनका प्रभाव कम हो गया है और चुने हुए प्रतिनिधि भी जनता से दूर हो गए हैं। वहीं, कुछ लोग अभी भी मानते हैं कि नीतीश कुमार ने इस क्षेत्र में, खासकर महिलाओं के लिए, स्थिरता और विकास लाया है। उनके समर्थक मानते हैं कि वे अटूट हैं और हर चुनाव के साथ और मजबूत हो रहे हैं।
**जीत के मार्जिन में गिरावट: एक साफ तस्वीर**
चुनाव आयोग के आंकड़े पिछले दो दशकों में हुए बदलावों को स्पष्ट करते हैं। 2005 में, नीतीश कुमार ने नालंदा में 21.17% के औसत जीत मार्जिन के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। 2010 में, भाजपा के साथ गठबंधन और सुशासन के दम पर, जद (यू) ने 15.88% का औसत मार्जिन दर्ज किया। पांच साल बाद, जब जद (यू) ने राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, तो यह आंकड़ा घटकर 7.64% हो गया। 2020 तक, यह केवल 9% के आसपास सिमट गया।
यह गिरावट लोकसभा चुनावों में भी दिखती है। 2019 और 2024 के बीच, नालंदा लोकसभा सीट पर जद (यू) के जीत के मार्जिन में 10 प्रतिशत अंकों की कमी आई। 2024 में, पार्टी उम्मीदवार कौशलेंद्र कुमार 1.69 लाख वोटों से जीते, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 2.56 लाख था। यह स्पष्ट संकेत है कि राष्ट्रीय चुनावों में भी गृह क्षेत्र पर नीतीश कुमार की पकड़ कमजोर हुई है।
**2025 की तैयारी: कड़ी टक्कर की उम्मीद**
आगामी विधानसभा चुनावों में, जद (यू) नालंदा की सात में से छह सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि सहयोगी भाजपा एक सीट पर। यह रणनीति पार्टी की गहरी जड़ों और बढ़ती प्रतिस्पर्धा को दर्शाती है। 2020 में, जद (यू) के जितेंद्र कुमार ने अस्थावां से राजद के अनिल कुमार को 11,600 वोटों से हराया था। इस बार, उनका मुकाबला राजद के रवि रंजन कुमार से है। बिहार शरीफ में भाजपा के डॉ. सुनील कुमार, जो लगातार पांच बार जीत चुके हैं, कांग्रेस के उमैर खान और सीपीआई के शिव प्रकाश यादव के खिलाफ मैदान में हैं। राजगीर में जद (यू) के कौशल किशोर का मुकाबला सीपीआई (एमएल) के विश्वनाथ चौधरी से है। इस्लामपुर सीट जद (यू) के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है, जहां पिछले चुनाव में राजद ने मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी।
**विरासत की अंतिम परीक्षा**
2020 में जद (यू) ने नालंदा की सात में से पांच सीटें जीती थीं, लेकिन घटते मार्जिन ने नीतीश कुमार को चिंतित कर दिया है। उनके लगातार दौरे और रैलियां इस बात का संकेत देती हैं कि वे अपनी पकड़ ढीली पड़ने को महसूस कर रहे हैं। नालंदा, जो उनका घर और भावनात्मक गढ़ है, अब उनकी स्थायी अपील की कसौटी बनेगा। इसका जवाब 6 नवंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान में मिलेगा।
 




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