बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 121 सीटों पर अभूतपूर्व 64.46% मतदान हुआ है। यदि दूसरे चरण में भी यही रफ्तार जारी रही, तो राज्य की राजनीतिक तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है। 2020 के पिछले पहले चरण में मात्र 55.68% मतदान हुआ था, जो इस बार की तुलना में काफी कम था।
भारत की आजादी के बाद से बिहार में 17 विधानसभा चुनाव हुए हैं। ऐतिहासिक पैटर्न बताते हैं कि जब भी मतदान प्रतिशत में पांच प्रतिशत से अधिक का उतार-चढ़ाव आता है, तो सत्ता में बदलाव की संभावना बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार का मतदान प्रतिशत सिर्फ सरकार बदलने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राज्य की राजनीति की दिशा भी तय कर सकता है।
**बिहार के चुनावी इतिहास पर एक नजर:**
1952 से 2020 तक के चुनावों में मतदान प्रतिशत और उसके नतीजों के बीच गहरा संबंध देखा गया है। 1967 में 7% की वृद्धि के साथ गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। 1980 में 6.8% की वृद्धि ने कांग्रेस को सत्ता में वापस लाया। 1990 में 5.8% की वृद्धि ने कांग्रेस का शासन समाप्त कर लालू यादव के युग की शुरुआत की। 2005 में 16.1% की गिरावट के बावजूद, इसने 15 साल के लालू-राबड़ी शासन को समाप्त कर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया, जिससे उनके दो दशक लंबे शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
**वर्तमान चुनाव के रुझान:**
इस बार, महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए NDA और महागठबंधन दोनों ने बड़े वादे किए। NDA ने महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये भेजे, जबकि तेजस्वी यादव ने सालाना 30,000 रुपये का वादा किया। विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) के माध्यम से मतदाता हेरफेर के आरोपों ने पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को बड़ी संख्या में मतदान के लिए प्रेरित किया है।
प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाले जन सुराज की शुरुआत ने मतदाताओं में आशावाद पैदा किया है। छठ महापर्व के बाद मतदान का समय होने से भी त्योहार मनाने वाले बिहार में ही रहे, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ा।
**संभावित परिणाम:**
विशेषज्ञ वर्तमान चुनाव में तीन संभावित परिदृश्यों की भविष्यवाणी कर रहे हैं। नीतीश कुमार 2010 की तरह मजबूत होकर उभर सकते हैं, जब उनकी पार्टी ने 115 सीटें जीती थीं और भाजपा का प्रभाव सीमित था। वहीं, जन सुराज राज्य की तीसरी राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो सकती है, जो भविष्य में बिहार की राजनीति को आकार दे सकती है। यदि महागठबंधन बहुमत हासिल करने में विफल रहता है, तो तेजस्वी यादव को आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
पहले चरण के मतदान ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। दूसरा चरण राज्य के शासन, गठबंधनों और भविष्य की राजनीतिक दिशा को निर्णायक रूप से आकार देगा।





