बिहार की राजनीति में अंतिम रणभेरी बज चुकी है। हफ्तों की उलझन और अंदरूनी कलह के बाद, महागठबंधन ने आखिरकार अपना दांव चल दिया है। 36 वर्षीय तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया है। यह एक ऐसा दांव है जो या तो महागठबंधन के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है या फिर एक बड़ी भूल।
विपक्ष की रणनीति स्पष्ट है: अपने सबसे युवा चेहरे को बिहार के सबसे अनुभवी नेता के सामने खड़ा करना, लगभग एक तिहाई मतदाता आधार बनाने वाले मुस्लिम-यादव वोट बैंक को एकजुट करना, और नीतीश कुमार के दो दशक पुराने शासन के सामने एक ताज़ा विकल्प प्रस्तुत करना। लेकिन हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के अलग होने और सीट-बंटवारे को लेकर सहयोगियों के बीच कड़वी लड़ाई के बाद, यह सवाल बना हुआ है: क्या यह घोषणा बदलाव लाने के लिए बहुत देर से हुई है?
नीतीश कुमार जहाँ एंटी-इनकंबेंसी (सत्ता-विरोधी लहर) का सामना कर रहे हैं और NDA अभी भी अपने नेतृत्व पर अनिश्चित है, ऐसे में यह तेजस्वी के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है। सवाल यह है कि क्या बिहार उनके बदलाव के वादे को स्वीकार करेगा या परिचित चेहरे के साथ ही रहेगा?
**यह दांव क्यों चल सकता है:**
**एम-वाई (मुस्लिम-यादव) आधार का पुनरुद्धार:** एक यादव नेता को आगे बढ़ाकर, गठबंधन अपने सबसे वफादार समर्थकों – 14% यादव और 18% मुस्लिम मतदाताओं – से तेजस्वी के पीछे एकजुट होने की उम्मीद कर रहा है। यह उस आधार को फिर से जोड़ने का एक प्रयास है जो प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी की ओर खिसकने लगा था।
**NDA के नेतृत्व में खालीपन:** जहाँ नीतीश कुमार का दो दशक का शासन थकान दिखा रहा है, वहीं सत्ताधारी गठबंधन ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि अगला नेतृत्व कौन संभालेगा। महागठबंधन को उम्मीद है कि यह स्पष्टता, यानी एक युवा, ऊर्जावान तेजस्वी बनाम एक वृद्ध नीतीश, मतदाताओं को आकर्षित करेगा जो निरंतर राजनीतिक पलटीखोरों और अनिश्चितता से निराश हैं।
**युवा शक्ति का आकर्षण:** उम्र का अंतर बहुत बड़ा है – 36 बनाम 73 साल। 20 से 29 वर्ष के बीच 16 मिलियन से अधिक युवा मतदाता और एक मिलियन से अधिक पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं के साथ, तेजस्वी का नौकरियों और विकास पर ध्यान केंद्रित करना बिहार के युवाओं के बीच वास्तविक गति पैदा कर सकता है।
**यह दांव क्यों पलट सकता है:**
**जातिगत समीकरणों में मुश्किल:** एक यादव नेता को प्रमुखता से पेश करने से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदायों, जैसे कुर्मी, कोयरी और गैर-यादव OBCs, जिनका समर्थन महत्वपूर्ण है, में नाराजगी पैदा हो सकती है। राजद की टिकट वितरण रणनीति भी इसमें सहायक नहीं है: 77 OBC उम्मीदवारों में से 53 यादव हैं। NDA ने इसका फायदा उठाते हुए खुद को सभी पिछड़ा वर्ग के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में चित्रित करना शुरू कर दिया है।
**’जंगल राज’ का भूत:** भाजपा लालू प्रसाद यादव के शासनकाल के 1990 के दशक की अराजकता की यादों को फिर से जीवित कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से युवा मतदाताओं को उन ‘अंधेरे दिनों’ की याद दिलाने को कहा है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि तेजस्वी अपने पिता के शासन की छाया से बच न सकें।
आंतरिक लड़ाइयों के हफ्तों ने NDA को एक शुरुआती बढ़त दी है। तेजस्वी को प्रोजेक्ट करने का देर से लिया गया निर्णय गठबंधन के कीमती समय और ऊर्जा की बर्बादी का कारण बन सकता है। बिहार अधिकार यात्रा से उनकी पहले की गति फीकी पड़ गई लगती है, और राहुल गांधी के साथ नियोजित रैलियाँ भी एक आत्मविश्वासपूर्ण अभियान के बजाय बचाव कार्य की तरह लग रही हैं।







