पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने बिहार की राजनीति में एक नया इतिहास रच दिया है। उन्होंने फिर एक बार पार्टी बदलते हुए नई पार्टी के साथ अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की है। इस कदम की चर्चा चारों ओर हो रही है। बिहार के लेनिन के नाम से मशहूर जगदेव प्रसाद के बेटे नागमणि ने शायद ही ऐसी कोई पार्टी छोड़ी होगी जिसमें वह शामिल न हुए हों। उन्होंने बिहार और केंद्र दोनों की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी को छोड़कर उन्होंने बीजेपी का दामन थामा। बीजेपी में तो वह दूसरी बार शामिल हुए हैं, इसके अलावा वह दो बार राजद और जदयू एवं दो बार कांग्रेस में भी रह चुके हैं। नागमणि इससे पहले कांग्रेस, राजद, जदयू, रालोसपा, एनसीपी और यहां तक कि बीएसपी में भी रह कर राजनीति कर चुके हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने दल बदलने के साथ ही कई बार अपनी पार्टी भी बनाई है और उनका दूसरे दलों में विलय भी किया है।
1977 में पहली बार विधायक बनने में सफल हुए नागमणि ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत शोषित समाज दल से की थी। राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार, उन्होंने पार्टी बदलने में कभी भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई।
शोषित समाज दल से राजनीति में एंट्री करने वाले नागमणि ने कांग्रेस, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, फिर कांग्रेस, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, फिर जेडीयू और फिर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर अपनी सुविधा के अनुसार राजनीति की।
पार्टी बदलने की राजनीति के दौरान, उन्होंने कम से कम दो बार अपनी पार्टी भी बनाई। 2015 में उन्होंने समरस समाज पार्टी का गठन किया, फिर 2017 में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी में विलय कर दिया। इसके बाद 2017 में ही नागमणि ने शोषित इंकलाब पार्टी का गठन किया, जिसका बाद में बहुजन समाज पार्टी में विलय हो गया।
नागमणि उन नेताओं में से एक हैं जो विधानसभा, विधान परिषद, राज्यसभा और लोकसभा, चारों के ही सदस्य रह चुके हैं। इसके अलावा, वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं। 2003 में अटल बिहारी सरकार में वह केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रह चुके हैं।
दल बदलने वाले अन्य नेताओं में आरसीपी सिंह और विजय कुमार चौधरी का नाम भी शामिल है।