भारत-पाकिस्तान का विभाजन विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसका दूसरा उदाहरण शायद ही कहीं और मिले। इस बंटवारे ने लाखों लोगों को ऐसी कड़वी यादें दीं जिन्हें शायद ही कोई याद करना चाहेगा। भाग्य के मारे इन लोगों की किस्मत विधाता ने कुछ इस तरह लिखी थी कि एक रात और एक लकीर ने उन्हें अमीर से फकीर बना दिया। बिहार की राजधानी पटना में भी ऐसे लोग हैं जो आज भी विभाजन की कसक को अपने दिल के किसी कोने में दबाए बैठे हैं। वे नहीं चाहते कि उस दर्द को कोई कुरेदे, लेकिन हर साल आजादी के मौके पर अनचाहे ही वो दर्द उभर आता है।
कुलदीप सिंह बग्गा, जो बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य थे, का परिवार भी उन परिवारों में से एक था जिन्होंने विभाजन का दंश झेला। किस्मत ने ऐसी पलटी मारी कि कभी कंपनी के मालिक रहे कुलदीप सिंह बग्गा के पिता को अपनी आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए सब कुछ पाकिस्तान में छोड़कर भारत आना पड़ा। उन्होंने जमीन-जायदाद छोड़ी, लेकिन उनकी आंखों में उम्मीद की किरण थी।
कुलदीप सिंह बग्गा ने बताया कि उनका परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के गुजरांवाला का रहने वाला था। उनके पिता अमरनाथ बग्गा का पूरे इलाके में रुतबा था। उनकी पीतल को गलाने की फैक्ट्री थी, जिसमें कई स्टाफ काम करते थे। विभाजन के समय, जब कुलदीप करीब आठ महीने के थे, तब रातों-रात घर, जमीन, जायदाद, सोना, चांदी और फैक्ट्री को छोड़ना पड़ा।
भारत आने के बाद, उनके पिता गुजरांवाला की यादों को भूल नहीं पाते थे। वे अक्सर वहां की सुख-सुविधाओं के बारे में बताते थे। आज, कुलदीप सिंह बग्गा की न केवल पटना बल्कि पूरे बिहार में एक अलग पहचान है। वे बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य और बिहार राज्य सिख सभा के प्रतिनिधि बोर्ड के अध्यक्ष रहे हैं। इसके अलावा, वह राजधानी के फ्रेजर रोड स्थित गुरुद्वारा की प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। कुलदीप सिंह बग्गा कहते हैं कि उन्होंने अपनी मेहनत से अपनी अलग पहचान बनाई है।