भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उपेंद्र कुशवाहा और अमित शाह से मुलाकात की, जिससे राजनीतिक माहौल गरमा गया है। उनकी बीजेपी में फिर से वापसी हो गई है। एनडीए गठबंधन, जो राज्य के मगध और शाहाबाद क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव में झटका खा चुका है, अभिनेता की वापसी से चुनावी लाभ की उम्मीद कर रहा है। सवाल उठता है कि क्या एनडीए की इस रणनीति से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह की बगावत या प्रशांत किशोर के भ्रष्टाचार पर प्रहार का जवाब मिलेगा।
पवन सिंह की राजनीतिक वापसी ने बिहार के चुनावी माहौल को गरमा दिया है। मंगलवार को, भोजपुरी स्टार बीजेपी के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े के साथ बिहार लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के आवास पहुंचे। इस दौरान, उन्होंने झुककर कुशवाहा के पैर छुए और गले भी लगे। इस मुलाकात से राज्य की राजनीति का पारा हाई हो गया है।
उपेंद्र कुशवाहा ही पवन सिंह की बीजेपी और एनडीए में वापसी का विरोध कर रहे थे, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार के आरा से उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गए थे, और इसकी वजह पवन सिंह का निर्दलीय चुनाव लड़ना माना गया था। कुशवाहा और राजपूत जाति आमने-सामने आ गए थे। राजपूत वोटरों के पवन सिंह का समर्थन करने से कुशवाहा की हार हुई थी। ऐसे में कुशवाहा नहीं चाहते थे कि पवन सिंह की वापसी हो। हालाँकि, जिस तरह से आज दोनों मिले और एक दूसरे को गले लगाया, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि कुशवाहा ने हार का गम भुला दिया है और अब दोनों मिलकर काम करेंगे।
इधर पवन सिंह को लेकर बीजेपी इसलिए भी सजग हुई क्योंकि कुछ दिन पहले ही पवन सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह से भी मिले थे। वही आरके सिंह जिन्होंने अपने बागी तेवर से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। उनकी बगावत और पार्टी के अंदर चल रही अंदरूनी लड़ाई ने बिहार की आरा सीट पर अनिश्चितता पैदा कर दी थी। ऐसे में माना जा रहा है कि पवन सिंह की बीजेपी में री-एंट्री से पार्टी ने न सिर्फ आरके सिंह के विकल्प का ढूंढ लिया है बल्कि राजपूतों के वोट बैंक में भी सेंध लगाने का काम किया है। यानी कह सकते हैं कि आरके सिंह की बगावत ने भी पवन सिंह की बीजेपी में दोबारा वापसी में अहम भूमिका निभाई है।
राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात और आशीर्वाद मिलने के बाद पवन सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात की। इन बैठकों ने स्पष्ट संकेत दिया है कि पवन सिंह अपनी दूसरी पारी शुरू करने जा रहे हैं।
माना जा रहा है कि बीजेपी का यह दांव सीधे शाहाबाद और डेहरी-ऑन-सोन की 24 से 25 सीटों पर असर डाल सकता है। आरा, बक्सर, रोहतास और कैमूर को मिलाकर बने इस इलाके में सामाजिक समीकरण बेहद पेचीदा हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां की 25 सीटों में से बीजेपी को 11, आरजेडी को 10 और कांग्रेस को 4 सीटें मिली थीं। पार्टी मानती है कि पवन सिंह की स्टार पावर से यहां 3-4% वोट और बढ़ सकते हैं, जो हार-जीत का फैसला करने के लिए काफी होगा।
उधर आरके सिंह के बागी तेवरों से आरा सीट पर संकट गहराया था। पवन सिंह भी राजपूत समाज से आते हैं, ऐसे में उनकी वापसी को बीजेपी न सिर्फ बगावत का जवाब बल्कि राजपूत वोट बैंक को साधने की रणनीति मान रही है।
कुल मिलाकर, पवन सिंह की एनडीए में वापसी ने बिहार चुनाव की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है। अब बड़ा सवाल यही है कि क्या भोजपुरी स्टार का जादू वोटों में तब्दील होगा और क्या वह बीजेपी, एनडीए की कमजोर कड़ी शाहाबाद और मगध में एनडीए का किला मजबूत करने में अहम भूमिका निभा पाएंगे।