बिहार विधानसभा चुनाव में चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) ने राज्य की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर बिहार में बदलाव की वकालत कर रहे हैं। वह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस पर हमला बोल रहे हैं, तो वहीं राज्य में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) नेता नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर भी निशाना साधने से नहीं चूक रहे हैं। वह जातिवाद की राजनीति की जगह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की बात कर रहे हैं। उन्होंने पूरे बिहार की पदयात्रा की और अब राजनीति और बिहार बदलने की बात कर रहे हैं, लेकिन बिहार में राजद की राजनीति जहां यादव और मुस्लिम पर टिकी है और नीतीश कुमार का लव-कुश (कोइरी-कुर्मी) का बड़ा वोट बैंक माना जाता है, ऐसे में प्रशांत किशोर जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उसमें किसका ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे, नीतीश कुमार या फिर तेजस्वी यादव का। या फिर चुनाव के बाद वह बिहार में किंगमेकर के रूप में उभरेंगे?
प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति के तीसरे ध्रुव के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे हैं। एक ओर, वह महागठबंधन के अल्पसंख्यक समर्थन आधार पर सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं और भाजपा पर निशाना साध रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्व समाजवादी नेताओं के आदर्शों का हवाला दे रहे हैं।
बिहार चुनावों में जीत में जाति के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोट एक प्रमुख कारक माने जाते हैं और अल्पसंख्यकों के संदर्भ में विभिन्न राजनीतिक दलों का रुख अब तक स्पष्ट रहा है, लेकिन प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी के मैदान में उतरने से अल्पसंख्यकों के संदर्भ में मौजूदा समीकरण बिगड़ने का खतरा है, हालांकि यह देखना बाकी है कि वह अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपनी पार्टी की ओर किस हद तक आकर्षित कर पाते हैं।
मुस्लिम वोट बैंक में क्या सेंध लगा पाएंगे प्रशांत किशोर?
प्रशांत किशोर पहले राजद नेता तेजस्वी यादव पर हमला कर रहे थे, लेकिन हाल ही में उनका निशाना भाजपा की ओर मुड़ गया है। इसके अलावा, वह सोशल इंजीनियरिंग की महत्वपूर्ण कवायद में जुट गए हैं। मुस्लिम मतदाताओं के प्रति उनका रुझान राजद नेतृत्व के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। प्रशांत किशोर की नजर मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण पर है और वह महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाना चाहते हैं। उन्होंने राज्य में मुसलमानों की 17.7% आबादी के हिसाब से उन्हें टिकट देने की पेशकश की है।
उन्होंने हाल में पटना के हज भवन में मुस्लिम नेताओं के साथ बैठक की और जेएसपी के ‘बिहार बदलाव’ के जरिए व्यापक समुदाय से जुड़ने का लक्ष्य रखा है। प्रशांत किशोर ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आश्वासन दिया है कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों में 40 अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को मैदान में उतारने को तैयार है। उन्होंने दावा किया, “हम विधानसभा चुनावों में हर हाल में 40 विधानसभा टिकट देंगे। हम अल्पसंख्यक समुदाय की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं।”
इस तरह, उन्होंने महागठबंधन के नेताओं को चुनौती दी है और उनसे पहले ही यह घोषणा करने को कहा है कि किन सीटों पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मैदान में उतारा जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर महागठबंधन उनसे कहेगा, तो जन सुराज पार्टी ऐसी सीटों पर अल्पसंख्यक समुदाय का कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी।
महागठबंधन लगाता रहा है भाजपा की ‘बी टीम’ का आरोप
महागठबंधन नेतृत्व अक्सर किशोर पर भाजपा की ‘बी टीम’ होने का आरोप लगाता रहा है, लेकिन जब से उन्होंने बिहार में भगवा पार्टी के नेताओं पर निशाना साधना शुरू किया है, तब से भाजपा में भी बेचैनी है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 19 मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। राजद के सबसे ज्यादा आठ विधायक हैं, उसके बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पांच, कांग्रेस के चार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एक-एक विधायक हैं, हालांकि बाद में एआईएमआईएम के चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे। इस चुनाव में राजद ने सबसे ज्यादा 23 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर दर्ज किया। जदयू 20.46 प्रतिशत से ज़्यादा के साथ दूसरे स्थान पर रहा। भाजपा 15.64 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर रहा और कांग्रेस सिर्फ 6.09 प्रतिशत के साथ चौथे स्थान पर रहा।
चूंकि जदयू और भाजपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था, इसलिए वे सरकार बनाने में सफल रहे, लेकिन राजद सबसे ज़्यादा वोट शेयर और सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राजद ने कुल 75 सीटें जीतीं, भाजपा ने 74 और जदयू ने 43 सीटें हासिल कीं। राजद के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने का एक बड़ा कारण यादव और मुस्लिम वोट मुख्य कारक थे। इसलिए, यादव और मुस्लिम राजद और जदयू के वोट बैंक माने जाते हैं, जबकि उच्च जाति और ब्राह्मणों का बहुमत भाजपा को जाता रहा है।
2010 के विधानसभा चुनावों को छोड़कर, पिछले साढ़े तीन दशकों से राजद और कांग्रेस को मुसलमानों का व्यापक समर्थन मिलता रहा है। पिछले चुनाव में, एआईएमआईएम ने 11% वोट हासिल करके सीमांचल क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई थी। मुसलमानों का झुकाव राजद और कांग्रेस की ओर ज्यादा दिखाई देता है, और जद(यू) को वोट देने की संभावना कम है, और जैसा कि पिछले चुनावों में देखा गया है, भाजपा को वोट देने की संभावना बहुत कम है। इसलिए, यादवों के जद(यू) या राजद को और मुसलमानों के राजद या कांग्रेस को वोट देने की संभावना पहले से ही है, ऐसे में किशोर के लिए इस चलन को तोड़ना और उन्हें बदलाव के लिए राजी करना एक बड़ी चुनौती होगी।
जात-पात की राजनीति से कैसे निपटेंगे प्रशांत किशोर?
बिहार एक ऐसा राज्य है जहां उम्मीदवार की जाति अभी भी बहुत मायने रखती है, क्योंकि लोग मानते हैं या मान लेते हैं कि उनकी जाति का उम्मीदवार उनके लिए दूसरों की तुलना में ज्यादा काम करेगा। यहां, प्रशांत किशोर को नुकसान है क्योंकि वे ब्राह्मण हैं। हालांकि वे जातिगत समीकरण को संतुलित करने के लिए जितने चाहें उतने उम्मीदवार उतार सकते हैं, लेकिन पार्टी का गैर-यादव स्टार चेहरा होना उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, बिहार में लगभग 14 से 15 प्रतिशत यादव हैं। जबकि, 2022 के बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, ब्राह्मण कारक को देखें तो वे राज्य की आबादी का 3.65-75% हिस्सा हैं।
राज्य के रुझानों को देखते हुए, प्रशांत किशोर कुछ सीटें जीत सकते हैं क्योंकि यहां परिवर्तनशील मतदाता हैं और जो एक नए चेहरे की तलाश में हैं और इस बार, प्रशांत किशोर वह नया चेहरा हैं। क्या 2025 का बिहार एक और दिल्ली होगा, 2015 जब राष्ट्रीय राजधानी के लोगों ने बदलाव के लिए मतदान किया और आम आदमी पार्टी का साथ दिया, जिससे अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। वहां उच्च जाति, निम्न जाति, मुस्लिम सहित अधिकांश मतदाताओं ने अरविंद केजरीवाल का समर्थन किया था, जिससे भाजपा केवल 3 सीटों पर पीछे रह गई, जबकि कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी।
क्या बनेंगे किंगमेकर या नहीं होगा कोई इम्पैक्ट?
सभी कारकों पर गौर करें तो प्रशांत किशोर वोटों के बंटवारे के सूत्रधार के रूप में उभर सकते हैं, जिसका नतीजा जेडी(यू)-बीजेपी गठबंधन या आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए वरदान या अभिशाप दोनों साबित हो सकता है। जन सुराज पार्टी के लिए एक और नतीजा यह हो सकता है कि अगर वह कुछ सीटें जीत लेती है और मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन या महागठबंधन के लिए सत्ता बरकरार रखने की चुनौती पेश करती है, तो वह ‘किंगमेकर’ बन सकती है।
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ओम प्रकाश अश्क कहते हैं कि वह पहले ही बता चुके हैं कि उनकी ताकत क्या है? वह कह चुके हैं कि यदि 10-12 सीटें आती हैं, तो विधायक जिस पार्टी में जाना चाह रहे हैं, जा सकते हैं। ऐसा नहीं लगता है कि कुछ कर पाएंगे। अभी पहला ब्रांड है, खास कर चुनावी राजनीति में। इस बार कुछ नहीं करते हैं और टिके रहते हैं अगले पांच साल तक, तो उनकी कोई संभावना बन सकती है। वह कुछ नहीं कर पाएंगे। इसका आधार है कि देश में हर जगह गठबंधन का दौर चल पड़ा है। बिहार में सालों से गठबंधन की सरकार बनती रही है, ऐसे में वह अकेले सरकार बनाने की बात करते हैं और किसी के साथ जाने की बात नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में कुछ कर पाएंगे। यह संभावना कम ही लगती है।
वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रशांत किशोर दो मोर्चों पर लड़ रहे हैं, एक तरफ राजद और दूसरी तरफ भाजपा। प्रशांत किशोर भाजपा से लड़ने के मूड में हैं और महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं। दोनों मोर्चों पर लड़कर वह राजनीति में तीसरी ताकत बनने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, वह इसमें कितना सफल होंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में है।