तलाक के बाद एक दंपत्ति फिर से साथ रहना चाहते थे, लेकिन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। यह मामला छत्तीसगढ़ का है। हाईकोर्ट ने कहा कि वह सबूतों के आधार पर फैसला करती है, भावनाओं के आधार पर नहीं।
दंपत्ति ने तलाक के बाद रिश्तों में सुधार के बाद डिक्री को रद्द करने और फिर से साथ रहने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। जस्टिस रजनी दूबे और अमितेंद्र किशोर प्रसाद की बेंच ने मामले की सुनवाई की। हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक के लिए दोनों सहमत थे, इसलिए अब अपील का कोई आधार नहीं बनता। कानून सबूतों और प्रक्रियाओं से चलता है, भावनाओं से नहीं।
यह दंपत्ति बिलासपुर का रहने वाला है। महिला बिलासपुर के सिविल लाइन की रहने वाली है, जबकि उसकी शादी मोपका के रहने वाले युवक से हुई थी। शादी के कुछ दिनों बाद उनके रिश्तों में खटास आ गई और उन्होंने अलग होने का फैसला किया।
इसके बाद उन्होंने फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की। फैमिली कोर्ट ने 4 जनवरी को दोनों की सहमति से तलाक मंजूर कर लिया और डिक्री पारित की। तलाक के बाद, दोनों करीब आए, बातचीत की और मिलना-जुलना शुरू किया। मार्च में वे मथुरा भी गए और होटल में रुके।
जब रिश्ते फिर से अच्छे हो गए, तो उन्होंने फिर से साथ रहने का फैसला किया। उन्होंने वकील के माध्यम से फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की और आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया। हाईकोर्ट में साथ बिताए समय की तस्वीरें भी पेश की गईं, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक दोनों की सहमति से हुआ था, इसलिए अपील का कोई आधार नहीं है। याचिका को खारिज कर दिया गया।