भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने उच्च न्यायालयों के जजों द्वारा निचली अदालतों के जजों की क्षमता और ज्ञान पर टिप्पणी करने के रवैये को अस्वीकार कर दिया है। सीजेआई का कहना है कि हाई कोर्ट, देश के सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ नहीं हैं, क्योंकि दोनों ही संवैधानिक अदालतें हैं। सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के आदेशों को केवल सही कर सकता है, संशोधित कर सकता है या रद्द कर सकता है। संविधान हाई कोर्ट के व्यक्तिगत जजों की क्षमता, योग्यता या ज्ञान पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं देता है। जस्टिस कांत ने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को निचली अदालतों के न्यायाधीशों के लिए मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए। सीजेआई ने कहा कि हाई कोर्ट के जजों को न्यायिक अधिकारियों द्वारा लिखे गए विवादित आदेशों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई करते समय उनकी योग्यता, ज्ञान या क्षमता की कमी के आधार पर उन्हें फटकारने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘उन्हें प्रशासनिक रूप से यह बताना होगा कि कैसे और किस क्षेत्र में सुधार किया जाना चाहिए। इसके लिए संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की महत्वपूर्ण भूमिका है। निचली अदालतों के जजों को न्याय देने के तमाम पहलुओं में जरूरी ट्रेनिंग देने, कानून के तमाम क्षेत्रों में ज्ञान हासिल करने और कोर्ट रूम में उचित आचरण और शिष्टाचार बनाए रखने में हाई कोर्ट की भूमिका जस्टिस डिलीवरी सिस्टम के भविष्य को आकार देगी। साथ ही साथ न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को मजबूत करेगी।’







