कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को 30 दिन तक गिरफ्तार रहने के बाद पद से हटाने वाले बिल का लगातार विरोध कर रही है. सूत्रों के अनुसार, पार्टी इस प्रावधान पर विचार करने वाली संसद की संयुक्त समिति से दूरी बना सकती है. इस बारे में जल्द ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को अवगत कराया जा सकता है.
मुख्य विपक्षी दल से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस उन तीन चर्चित विधेयकों पर विचार करने वाली संसद की संयुक्त समिति से दूरी बना सकती है, जिनमें गंभीर आपराधिक आरोपों में लगातार 30 दिन तक गिरफ्तार रहने के बाद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान किया गया है. पार्टी की तरफ से जल्द ही इस बारे में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को जानकारी दी जा सकती है.
बीते शनिवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा था कि किसी भी राजनीतिक दल ने उन्हें तीन विधेयकों पर विचार के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति का बहिष्कार करने के बारे में पत्र नहीं लिखा है. ऐसे में अब खबर है कि कांग्रेस विरोध के चलते इस समिति से दूरी बना सकती है.
कांग्रेस से पहले तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (UBT) और आम आदमी पार्टी सहित चार पार्टियों ने घोषणा की थी कि वे समिति का हिस्सा नहीं होंगी. इसके साथ ही समाजवादी पार्टी और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने भी इस समिति से दूरी बनाने का संकेत दिया है.
मानसून सत्र के आखिरी दिन गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन अहम विधेयक पेश किए थे – केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, संविधान (130वां संशोधन) विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक. इन विधेयकों में यह प्रावधान है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आरोप में लगातार 30 दिन तक गिरफ्तार रहते हैं, तो उन्हें पद से हटा दिया जाएगा. यानी पीएम, सीएम या कोई मंत्री गंभीर अपराध (जिसमें न्यूनतम 5 साल की सजा का प्रावधान हो) में लगातार 30 दिन जेल में रहते हैं, तो 31वें दिन उनका पद स्वतः समाप्त माना जाएगा. हालांकि रिहाई होने के बाद उन्हें फिर से इस पद पर नियुक्त किया जा सकेगा.
अमित शाह के मुताबिक, ऐसा इसलिए किया जाना जरूरी है ताकि जेल से सरकार न चलाई जा सके. यह बिल पेश करते समय स्वयं गृह मंत्री ने ही इसे संयुक्त संसदीय समिति में भेजने का प्रस्ताव रखा था. समिति को अपनी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र में देनी है, लेकिन अभी तक समिति का गठन ही नहीं हो सका है.
वहीं इन विधेयको को लेकर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने जमकर विरोध किया था. बिल को लेकर सदन में भी जोरदार हंगामा हुआ था. विपक्षी दलों ने इस बिल को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए थे. उनका कहना था कि यह प्रस्ताव असंवैधानिक है और इसे राज्यों में विपक्षी नेताओं को कमजोर करने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. विरोध के बीच ही इन विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा गया था. इस समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे, लेकिन अब तक समिति का गठन नहीं हो पाया है.