दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि हत्या करने के इरादे से की गई घरेलू हिंसा के अपराधों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसे मामलों में वैवाहिक संबंध अपराध को कम करने वाला कारक नहीं हो सकता। अदालत ने आरोपी को जमानत देने से जुड़ी याचिका भी खारिज कर दी। यह मामला मृतका के भाई की शिकायत पर दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी पहले से आपराधिक गतिविधियों में शामिल था।
जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सवर्णा कांता शर्मा ने कहा, “घरेलू हिंसा के अपराधों को, जिसमें हत्या का इरादा भी शामिल है, गंभीरता से लेना चाहिए। ऐसे मामलों में वैवाहिक संबंध को अपराध को कम करने वाला कारक नहीं, बल्कि गंभीर बनाने वाला माना जाएगा।” अदालत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी, 1860) की धारा 307 और 506 तथा आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 25, 27, 54 और 59 के तहत दर्ज एक मामले में जमानत की मांग करने वाले एक आरोपी द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी।
यह पूरा मामला एक भाई के बयान पर आधारित था जिसमें उसने आरोप लगाया था कि उसकी बहन को उसके पति, जो इस मामले में मुख्य आरोपी है, ने गोली मार दी थी। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि शादी के बाद मृतका को पता चला कि उसका पति आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा है और इस वजह से वह 2015 में जेल भी गया था। मृतका अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती थी और जेल से बाहर आने के बाद, आरोपी ने उसे अपने साथ रहने के लिए मजबूर किया और मना करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दी थी। प्राथमिकी के अनुसार, जब मृतका ड्यूटी पर थी, तो आरोपी ने उसे जबरन एक ऑटो में बिठाया, एक देसी पिस्तौल निकाली, उसके पेट में गोली मार दी और वहां से फरार हो गया।
आरोपी पति को जमानत देने से इनकार करते हुए, जस्टिस शर्मा ने कहा कि आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी ने पीड़िता पर तब गोली चलाई जब उसने ससुराल जाने से इनकार कर दिया था और गुस्से में आकर महिला को गोली मार दी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि वह पत्नी द्वारा ससुराल जाने से इनकार करने पर पति के क्रोध की दलील स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि इस वजह से उस पितृसत्तात्मक अधिकार का पता चलता है जिसमें पुरुष स्वयं को हकदार समझता है। कोर्ट ने यह भी कहा, “पीड़िता या पत्नी द्वारा आरोपी के साथ जाने से इनकार करना अचानक उकसावे की श्रेणी में नहीं आता।”
आरोपी की याचिका पर हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक घर लौटने से इनकार करने के पत्नी के दावे का जवाब एक बहुत ही क्रूर हिंसा के रूप में दिया गया, जिसमें उस पर गोली चलाई गई, जिसके लिए उसे एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा और 4 सर्जरी करानी पड़ी। अदालत ने यह भी कहा कि क्षणिक आवेश में क्रोध की दलील स्वीकार करना पितृसत्तात्मक अधिकार की अवधारणा को सही ठहराने के जैसा होगा। कोर्ट ने दलील को खारिज करते हुए, ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह छह महीने के भीतर केस खत्म करे, क्योंकि आरोपी करीब छह साल से न्यायिक हिरासत में है।