राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर दिल्ली में आयोजित 3 दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला में, संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के अंग्रेजों के खिलाफ मुखर होने और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला गया। बचपन से ही ब्रिटिश शासन का विरोध करने वाले हेडगेवार ने 1897 में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती पर मिठाइयाँ लेने से इनकार कर दिया था। 1907 में, उन्होंने वंदे मातरम गाने पर प्रतिबंध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसके कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया।
हेडगेवार, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से जुड़े रहे और मेडिकल की पढ़ाई के दौरान अनुशीलन समिति से जुड़े, जो बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन था। 1915 में, उन्होंने मध्य भारत में एक राष्ट्रव्यापी विद्रोह का नेतृत्व किया। कांग्रेस के साथ भी उनका जुड़ाव रहा, और 1920 में नागपुर में कांग्रेस अधिवेशन के आयोजन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1921 में, उन्होंने नागपुर में शराब की दुकानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। 1923 में, उन्होंने झंडा सत्याग्रह का आयोजन किया और स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में स्वयंसेवकों को संगठित करने के लिए वर्धा परिषद की स्थापना की और 1925 में आरएसएस की स्थापना की।
भगत सिंह और राजगुरु ने भी हेडगेवार से मुलाकात की। 1928 में, आरएसएस के स्वयंसेवकों ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया। हेडगेवार ने ब्रिटिश सरकार के झूठे वादों की निंदा की और भारत को अपनी ताकत से आजादी हासिल करने का आह्वान किया। उन्होंने कांग्रेस के पूर्ण स्वतंत्रता के प्रस्ताव का समर्थन किया और आरएसएस शाखाओं को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्देश दिया। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया, जिसके लिए उन्हें जेल हुई।
1932 में, मध्य प्रांत सरकार ने आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया, जिसका विरोध हुआ। हेडगेवार के विचारों ने महात्मा गांधी, वीर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं को प्रभावित किया। उन्होंने मुक्तेश्वर दल का आरएसएस में विलय करवाया। 1936 में फैजपुर कांग्रेस अधिवेशन में, एक आरएसएस स्वयंसेवक को झंडा फहराने के लिए सम्मानित नहीं किया गया, जिसका हेडगेवार ने विरोध किया।
1937 में, हेडगेवार ने वीर सावरकर को आरएसएस के कार्यों से परिचित कराया। 1939 में, उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन का समर्थन किया। 1940 में, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारियों को संगठित करने के लिए त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती का स्वागत किया। भारत छोड़ो आंदोलन में आरएसएस के स्वयंसेवकों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। ब्रिटिश खुफिया विभाग की रिपोर्टों में आरएसएस की गतिविधियों का उल्लेख किया गया है, जिसमें प्रशिक्षण शिविरों और गुप्त बैठकों का आयोजन शामिल था।
डॉ. हेडगेवार ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और आरएसएस को एक मजबूत राष्ट्रवादी संगठन के रूप में स्थापित किया।