राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच अक्सर टकराव की खबरें आती रही हैं। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक से लेकर पंजाब और दिल्ली तक, राज्यपालों पर मनमानी करने के आरोप लगते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई चल रही है। इस मामले में केंद्र सरकार ने पहली बार जवाब दिया है। चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान निर्माताओं का उद्देश्य राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करना था।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने 10वें दिन राज्यपाल के विधेयक संबंधी अधिकारों पर अपनी दलील रखी, जिसमें कहा गया कि राज्यपाल असंवैधानिक विधेयकों को रोक सकते हैं और उन्हें पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पंजाब सरकार की दलील का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास विधेयक को मंजूरी देने के अलावा भी विवेकाधिकार हैं।
केंद्र ने बताया कि कैसे राज्यपाल पुनर्विचार के लिए आदेश देते हैं। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाते समय उसकी स्वीकृति न लेने की औपचारिक घोषणा भी करते हैं। केंद्र अनुच्छेद 200 के प्रावधान 1 के तहत लौटाए गए विधेयक के साथ भेजे गए राज्यपाल का संदेश पुनर्विचार के दायरे को निर्धारित करेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिन विधेयकों पर उसी वर्ष पुनर्विचार करके राज्यपाल को स्वीकृति के लिए वापस भेजा गया था, उनकी मूल विधेयक संख्या वही रहेगी, जबकि विधानमंडल अगले साल विधेयक पर पुनर्विचार करता है तो विधेयक संख्या अलग होगी।
केंद्र ने पंजाब सरकार की दलील को खारिज करते हुए कहा कि राज्यपाल के पास विधेयक को अमान्य घोषित करने के अलावा कोई विवेकाधिकार नहीं है। केंद्र ने कहा कि राज्यपाल उन विधेयकों को रोक सकते हैं जो स्पष्ट रूप से असंवैधानिक हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संवैधानिक प्रावधान धारा 200 और 201 की व्याख्या करते समय अदालत को राष्ट्र के भविष्य में उत्पन्न होने वाली चरम और खतरनाक परिस्थितियों पर विचार करना चाहिए।
केंद्र ने यह भी कहा कि राज्यपाल को विधानमंडल का एक अंग माना जाता है। विपक्षी राज्यों का यह दावा कि सहमति की शक्तियां कार्यकारी प्रकृति की हैं, मूलतः गलत है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आगे कहा कि राज्यपाल की सहमति विधायी प्रक्रिया का एक हिस्सा है, जो अर्ध-विधायी या स्व-विशिष्ट प्रकृति की होती है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान निर्माताओं को उम्मीद थी कि राज्यपालों की स्थिति सामंजस्यपूर्ण होगी। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपालों की नियुक्ति करते समय प्रांतीय सरकारों (अब राज्य) को भी शामिल किया जाता था।
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के पास कई शक्तियां हैं, जिनके तहत वे सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के अलावा राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को आदेश दे सकते हैं। प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के बारे में संविधान के अनुच्छेद 143 में बताया गया है। यह सामान्य प्रक्रिया से अलग होती है। अगर राष्ट्रपति को कोई मुद्दा कानूनी या सार्वजनिक रूप से जरूरी लगता है, तो इसके तहत राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से किसी भी कानून या संवैधानिक मुद्दे पर सलाह मांग सकते हैं। 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल मामले पर फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल विधायकों को अनिश्चितकाल तक के लिए नहीं रोक सकता। इसके बाद राष्ट्रपति ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का आदेश दिया था।