केंद्र सरकार राजनीतिक जवाबदेही मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। बुधवार को संसद में एक नया विधेयक पेश किया जाएगा, जिसके अनुसार यदि प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्री को गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार या हिरासत में लिया जाता है, तो उन्हें इस्तीफा देना होगा। प्रस्तावित कानून के अनुसार, यदि कोई जन प्रतिनिधि 30 दिन तक हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन तक इस्तीफा देना होगा, अन्यथा उसे पद से स्वतः ही हटा दिया जाएगा। अभी तक, संविधान में केवल दोषसिद्धि पर ही जन प्रतिनिधियों को हटाने का प्रावधान था। यह विधेयक उस कमी को दूर करने का प्रयास करता है, ताकि ऐसे मामलों में अग्रिम कार्रवाई की जा सके, बशर्ते संबंधित अपराध के लिए कम से कम पांच साल की सजा हो। ऐसे अपराधों में हत्या और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मामले शामिल होंगे। यह विधेयक संसद में चर्चा के लिए तीन प्रमुख प्रस्तावों में से एक है – केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025। इन सभी प्रस्तावों को विस्तृत विचार के लिए संसदीय समिति को भेजे जाने की संभावना है। गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में इस प्रस्ताव को पेश करेंगे। इसके तहत संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239एए में संशोधन किए जाएंगे, जो केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों की नियुक्ति और जिम्मेदारियों से संबंधित हैं। इस मुद्दे पर विपक्ष की ओर से अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन इस पर विचार करने के लिए बुधवार सुबह बैठक बुलाई गई है। आमतौर पर मंत्री गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे देते हैं ताकि शासन में बाधा न आए, हालांकि कुछ मामलों में अलग-अलग उदाहरण देखने को मिले हैं, जैसे आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, जिन्होंने दिल्ली आबकारी नीति मामले में अपनी गिरफ्तारी के बाद लगभग छह महीने तक जेल से सरकार चलाई।
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गंभीर आपराधिक आरोपों में फंसे पीएम, सीएम और मंत्रियों को हटाने के लिए सरकार विधेयक लाएगी
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