भारत ने म्यांमार के शरणार्थियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र (UN) के एक विशेषज्ञ की रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद म्यांमार के शरणार्थी ‘गंभीर दबाव’ में हैं। भारत ने इन टिप्पणियों को ‘पक्षपातपूर्ण और निराधार’ बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एंड्रयूज द्वारा प्रस्तुत की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अधिकारियों द्वारा म्यांमार के शरणार्थियों को हाल के महीनों में तलब, हिरासत में लेने, पूछताछ करने और निर्वासन की धमकी दी गई है। इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए, भारत के सांसद दिलीप सैकिया ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति में कहा कि ये आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और यह विशेष दूत का ‘अंधा विश्लेषण’ है।
सैकिया ने कहा, “मैं रिपोर्ट में मेरे देश के संबंध में की गई निराधार और पक्षपातपूर्ण टिप्पणियों पर गंभीर आपत्ति व्यक्त करता हूं। मैं पहलगाम में निर्दोष नागरिकों पर हुए आतंकी हमले को सांप्रदायिक चश्मे से देखने वाले विशेष दूत के पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण की कड़ी निंदा करता हूं।” उन्होंने विशेष दूत से आग्रह किया कि वे अविश्वसनीय और विकृत मीडिया रिपोर्टों पर निर्भर न रहें, जिनका एकमात्र उद्देश्य ऐसे देश को बदनाम करना है जहां सभी धर्मों के लोग सद्भाव से रहते हैं, जिनमें 20 करोड़ से अधिक मुस्लिम भी शामिल हैं, जो दुनिया की मुस्लिम आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है।
भारत ने स्पष्ट किया है कि पहलगाम आतंकी घटना में म्यांमार का कोई भी नागरिक शामिल नहीं था। भारत ने म्यांमार में शांति प्रक्रिया के लिए अपने समर्थन को दोहराया और समावेशी राजनीतिक संवाद, हिंसा की समाप्ति, राजनीतिक कैदियों की रिहाई और विश्वसनीय चुनावों के माध्यम से लोकतंत्र की बहाली की आवश्यकता पर जोर दिया। रिपोर्ट में भारत द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों की हिरासत और बांग्लादेश को निर्वासन का भी उल्लेख किया गया था, जिस पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने भारत से प्रतिक्रिया मांगी है।







