अबू धाबी में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) विश्व संरक्षण कांग्रेस में एक उच्च-स्तरीय गोलमेज संवाद के दौरान भारत ने अपने पर्यावरण संरक्षण के मॉडल को प्रस्तुत किया। भारत ने इस बात पर जोर दिया कि उनकी संरक्षण नीति साक्ष्य-आधारित, समानता-संचालित और सांस्कृतिक रूप से गहरी जड़ों वाली है। यह प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति और परंपराओं में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर रहने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्व को गहराई से समाहित किए हुए है।
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री, श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने इस बात को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “आधुनिक विज्ञान भले ही स्थिरता (sustainability) और जलवायु परिवर्तन (climate change) जैसे शब्दों का प्रयोग करता हो, लेकिन भारत लंबे समय से प्रकृति के अनुरूप जीवन जीने के व्यावहारिक तरीकों से इन सिद्धांतों को आत्मसात किए हुए है।”
श्री सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा COP26, ग्लासगो में 2021 में लॉन्च किए गए ‘मिशन लाइफ’ (Mission LiFE) के बारे में IUCN को अवगत कराया। उन्होंने वैश्विक समुदाय से आग्रह किया कि वे पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए ‘मिशन लाइफ’ को एक अंतर्राष्ट्रीय जन आंदोलन के रूप में अपनाएं। इसका उद्देश्य “सोच-समझकर उपयोग” को बढ़ावा देना है, न कि “बिना सोचे-समझे विनाशकारी उपभोग” को। मिशन लाइफ का दृष्टिकोण भारत के पारंपरिक ज्ञान और मूल्यों पर आधारित पर्यावरण के प्रति जागरूक व्यवहार को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है।
श्री सिंह ने विस्तार से बताते हुए कहा कि भारत की संस्कृति का मानना है कि विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। भारत इन स्वदेशी प्रथाओं को जलवायु अनुकूलन और जैव विविधता संरक्षण की औपचारिक प्रणालियों में एकीकृत करने, उनका दस्तावेजीकरण करने और उन्हें मान्य करने के लिए काम कर रहा है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे नीलगिरि की टोडा जनजातियाँ चींटियों के घोंसले बनाने के व्यवहार का निरीक्षण करके मानसून का अनुमान लगाती हैं, या अंडमान की जारवा जनजातियाँ मछलियों की गतिविधियों के आधार पर चक्रवातों की भविष्यवाणी करती हैं। उन्होंने राजस्थान की बावड़ियों (stepwells) के माध्यम से जल संरक्षण की टिकाऊ प्रथाओं का भी उल्लेख किया।
श्री सिंह ने कहा, “जैसे-जैसे IUCN प्रकृति-आधारित समाधानों (nature-based solutions) को आगे बढ़ा रहा है, हमारा कार्य इस संवाद को और गहरा करना है। आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान के धागों को एक साथ बुनने से अमूर्त अवधारणाओं से ठोस कार्यों की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी।”
भारत ने जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD) और कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय रेड लिस्ट मूल्यांकन पहल (National Red List Assessment initiative) की शुरुआत की है। श्री सिंह ने राष्ट्रीय रेड लिस्ट मूल्यांकन (NRLA) के लिए भारत का विजन 2025-2030 जारी किया। इसके तहत भारत के विविध पारिस्थितिक तंत्रों में लगभग 11,000 प्रजातियों – जिनमें 7,000 वनस्पति प्रजातियां और 4,000 प्राणी प्रजातियां शामिल हैं – के विलुप्त होने के जोखिम का दस्तावेजीकरण और मूल्यांकन किया जाएगा। इस मूल्यांकन के लिए एक रूपरेखा भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) द्वारा IUCN-भारत और सेंटर फॉर स्पीशीज सर्वाइवल, भारत के सहयोग से तैयार की गई है। श्री सिंह ने कहा, “यह विजन हमारी प्रजातियों की संरक्षण स्थिति का आकलन और निगरानी करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित, समावेशी और विज्ञान-आधारित प्रणाली के लिए हमारा रोडमैप प्रस्तुत करता है।”