ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की सैन्य रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहा है। यह परिवर्तन देश की समग्र रणनीतिक मुद्रा को प्रभावित कर रहा है। अब भारत ‘रणनीतिक संयम’ की पुरानी नीति का पालन नहीं कर रहा है, जो पूरे क्षेत्र के लिए एक स्पष्ट संकेत है।

यह विश्लेषण किसी भारतीय सूत्र से नहीं, बल्कि वाशिंगटन के अमेरिकी सैन्य विशेषज्ञों, जॉन स्पेंसर और लॉरेन डिजन एमोस द्वारा प्रस्तुत किया गया है। उनका कहना है कि भारत की सैन्य नीति में बड़ा परिवर्तन हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, नई दिल्ली ने 2016 के उरी हमले और 2019 के बालाकोट स्ट्राइक के माध्यम से अपने बदले हुए रुख का संकेत पहले ही दे दिया था।
उन्होंने विशेष रूप से पाहलगम आतंकी हमले के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लॉन्च को इस संदेश को और अधिक स्पष्ट करने वाला बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ‘रणनीतिक संयम’ का उद्देश्य पाकिस्तान के साथ तनाव को बढ़ने से रोकना था, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव हुआ। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने नियमित आतंकी हमलों और सैन्य प्रतिक्रिया के बीच की खाई का फायदा उठाया और इस झिझक को ही अपना लाभ बना लिया।
उनकी रिपोर्ट बताती है कि भारत पहले आतंकी नेटवर्क के खिलाफ सीमित कार्रवाई करता था, लेकिन इस दृष्टिकोण से खतरा कम नहीं हुआ, बल्कि आतंकवाद और अधिक खतरनाक हो गया। समूहों को यह विश्वास होने लगा था कि भारत कुछ निश्चित सैन्य सीमाएं कभी पार नहीं करेगा। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने इस धारणा को तोड़ा है। इस ऑपरेशन की योजना और निष्पादन से स्पष्ट होता है कि भारत ने एक बड़ी सैद्धांतिक सीमा को पार कर लिया है।
स्पेंसर और एमोस के अनुसार, भारत अब आतंकवाद के जवाब में केवल कड़े शब्दों की चेतावनी देने या अंतर्राष्ट्रीय मंजूरी का इंतजार करने वाला देश नहीं रह गया है। यह एक नई कार्यप्रणाली बना रहा है, जो स्पष्ट संकेतों और नागरिकों की सुरक्षा खतरे में होने पर तुरंत कार्रवाई करने की तत्परता पर आधारित है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने इस बदलाव को जन्म नहीं दिया, बल्कि इसे उजागर किया है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत अब किसी बड़े आतंकी हमले को युद्ध का कार्य मान रहा है। यह परिवर्तन प्रतिक्रिया योजना की पूरी संरचना को बदल देता है। भारत अब अंतर्राष्ट्रीय अनुमोदन या लंबी जांच का इंतजार नहीं करता। सरकार एक नया सिद्धांत स्थापित कर रही है: यदि कोई आतंकी हमला नागरिकों को निशाना बनाता है, तो नई दिल्ली को पहले हमला करने का अधिकार सुरक्षित है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में इस्तेमाल किए गए हथियार और प्रणालियाँ (जैसे लंबी दूरी की मारक क्षमता, ड्रोन झुंड, लोइटरिंग मूनिशन्स और रियल-टाइम फ्यूज्ड इंटेलिजेंस) दर्शाते हैं कि भारत निर्णायक और पूर्व-नियोजित सैन्य कार्रवाई के ढांचे की ओर बढ़ रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि यह भारत की सुरक्षा नीति में एक स्थायी संस्थागत बदलाव है।
रिपोर्ट में पुराने ‘रणनीतिक संयम’ के विचार पर भी फिर से प्रकाश डाला गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह नीति पाकिस्तान के साथ तनाव को नियंत्रित करने के लिए डिज़ाइन की गई थी, लेकिन वास्तव में इसका विपरीत प्रभाव हुआ। पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा समर्थित आतंकवादी संगठनों ने हमले और आधिकारिक सैन्य प्रतिक्रिया के बीच के अंतराल का फायदा उठाना सीख लिया था, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि भारत बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई या सीमा पार कार्रवाई से बचेगा। ये सीमित प्रतिक्रियाएँ अंततः एक पूर्वानुमेय पैटर्न में बदल गईं, जिसे पाकिस्तान के प्रॉक्सी सीख गए थे।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की सोच में वर्तमान बदलाव संरचनात्मक है। यह एक बार की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक संस्थागत परिवर्तन है। भारत की निवारक रणनीति अब अलग-अलग घटनाओं के बजाय पैटर्न पर आधारित है। इरादे का महत्व सबूत के बराबर है। जनता की उम्मीदें नीति को आकार दे रही हैं, और नागरिक तेजी से निर्णायक प्रतिशोध चाहते हैं, न कि लंबी जांच। इस राजनीतिक वास्तविकता के कारण संयम के लिए कम गुंजाइश बची है और राष्ट्रीय रणनीति सार्वजनिक भावना के करीब आ रही है।
विशेषज्ञों ने 2025 में पाकिस्तान के साथ हुई सीजफायर चर्चाओं का भी जिक्र किया, जहाँ भारत ने किसी भी बाहरी मध्यस्थता को अस्वीकार कर दिया। उनका कहना है कि यह कोई बातचीत की चाल नहीं, बल्कि एक नए सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है। भारत अब पाकिस्तान के साथ संकटों को क्षेत्रीय और आंतरिक मानता है, और दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच सीधी बातचीत को प्राथमिकता देता है। यह रणनीति भारत को कार्रवाई की अधिक स्वतंत्रता देती है और बाहरी हस्तक्षेप को कम करती है।
उनकी अंतिम आकलन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के युद्धक्षेत्र परिणामों पर केंद्रित है। उन्होंने बताया कि भारतीय गोलाबारी के सामने पाकिस्तान की चीनी वायु-रक्षा प्रणालियाँ विफल रहीं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि PL-15 मिसाइल ने वह प्रभाव नहीं दिखाया जिसकी पाकिस्तान को उम्मीद थी।
उनका निष्कर्ष एक बड़ी रणनीतिक संदेश देता है: भारत दो-मोर्चों के युद्ध के लिए तैयार हो रहा है।






