
बिहार में राजग की ऐतिहासिक जीत के बाद अब झारखंड की राजनीति में भी गहमागहमी तेज हो गई है। हालांकि यहां सत्तासीन गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत है, लेकिन अंदरखाने बड़े राजनीतिक बदलावों की चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने हाल ही में दिल्ली में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से मुलाकात की है। यह मुलाकात सिर्फ औपचारिक नहीं बताई जा रही, बल्कि इसमें सत्ता में साथ मिलकर काम करने की प्रारंभिक सहमति बनने की भी बात कही जा रही है। यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि उपमुख्यमंत्री पद के लिए बाबूलाल मरांडी या चंपाई सोरेन में से किसी एक के नाम पर विचार चल रहा है।
यह राजनीतिक घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब झारखंड में सत्ता परिवर्तन की कोई तत्काल आवश्यकता नजर नहीं आती। झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन के पास पूर्ण बहुमत है और झामुमो अपने बलबूते भी सरकार चलाने में सक्षम है। कांग्रेस भी भाजपा को रोकने के लिए समर्थन देने की स्थिति में होगी। लेकिन राजनीति केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, यह परिस्थितियों, दबावों और सही समय का लाभ उठाने की क्षमता पर भी निर्भर करती है।
हाल के महीनों में हेमंत सोरेन सरकार को कई वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विधानसभा चुनावों के दौरान किए गए महत्वपूर्ण वादे, जैसे कि महिलाओं को 2,500 रुपये प्रतिमाह ‘मइयां सम्मान योजना’ के तहत और धान का समर्थन मूल्य 3,200 रुपये प्रति क्विंटल करना, वित्तीय बाधाओं के कारण अटके हुए हैं। केंद्र सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता के अभाव में इन वादों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में, भाजपा के साथ तालमेल झामुमो के लिए एक व्यावहारिक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
वहीं, भाजपा भी राज्य में अपने राजनीतिक समीकरणों को मजबूत करने के प्रयास में जुटी है। विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद पार्टी यह महसूस कर रही है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में वापसी आसान नहीं होगी। भाजपा की आदिवासी समुदाय में पकड़ कमजोर हुई है और उसका राजनीतिक आधार भी सिकुड़ता दिख रहा है।
इस स्थिति में, झामुमो के साथ संभावित गठबंधन भाजपा को एक नई दिशा दे सकता है। इससे यह संदेश भी जाएगा कि पार्टी राज्य के प्रमुख सामाजिक समूहों के साथ जुड़ने और सहयोग करने के लिए तैयार है। इन अटकलों को इस बात से भी बल मिलता है कि झारखंड की राजनीति के दो प्रमुख विरोधी माने जाने वाले हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी पिछले कुछ समय से असामान्य रूप से शांत हैं। सूत्रों का मानना है कि झारखंड की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां किसी भी क्षण सत्ता के नए समीकरण सामने आ सकते हैं।





