शारदीय नवरात्र के आरंभ होते ही, पूरा देश मां दुर्गा की स्तुति और आराधना में लीन हो जाता है। झारखंड की राजधानी रांची में, दुर्गा पूजा के सैकड़ों अनोखे थीम पर आधारित पंडाल बनाए जाते हैं। रांची पूरे देश में अपनी भव्यता और अनूठे दुर्गा पूजा आयोजनों के लिए जाना जाता है।
धार्मिक माहौल में, रांची के डोरंडा क्षेत्र में रहने वाले गोरखा समाज, खासकर झारखंड आर्म्ड फोर्स वन (जैप-1) के जवान, 1880 से ही विशेष तरीके से मां दुर्गा की पूजा करते आ रहे हैं। नवरात्र के पहले दिन, मां दुर्गा को हथियारों से सलामी दी जाती है। यहां मां दुर्गा की मूर्ति नहीं स्थापित की जाती, बल्कि कलश की स्थापना कर मां शक्ति की आराधना की जाती है। यह परंपरा पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखती है।
रांची के डोरंडा स्थित जैप-1 परिसर में नवरात्र की शुरुआत कलश स्थापना से होती है। यहां मां दुर्गा की प्रतिमा के स्थान पर कलश स्थापित किया जाता है। कलश स्थापना के समय, जैप-1 के जवान अपने आधुनिक हथियारों से फायरिंग कर मां शक्ति को सलामी देते हैं। मान्यता है कि फायरिंग और हथियारों की पूजा से जवानों का आत्मविश्वास बढ़ता है और उनके हथियार हमेशा सुरक्षित रहते हैं।
मां दुर्गा की कृपा से, जैप-1 के जवानों के हथियार कभी भी विफल नहीं होते, चाहे वे नक्सली विरोधी अभियानों में हों या वीआईपी सुरक्षा में। महानवमी पर, 101 बकरों की बलि दी जाती है, और हर बलि के दौरान गोरखा जवान हथियारों से फायरिंग कर मां को सलामी देते हैं। सप्तमी के दिन, गोरखा समाज फूल पाती शोभायात्रा निकालता है, जिसमें नौ प्रकार के पेड़ों की शाखाओं की पूजा की जाती है, और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया जाता है।