प्रतिबंधित नक्सली संगठन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने अपनी गंभीर गलतियों, बार-बार की विफलताओं और रणनीतिक चूकों को स्वीकार करते हुए, सशस्त्र संघर्ष को अस्थायी रूप से निलंबित करने की घोषणा की है। साथ ही, संगठन ने केंद्र और राज्य सरकारों के साथ शांति वार्ता की इच्छा जताई है। यह घोषणा अगस्त में जारी एक कथित दस्तावेज में माओवादी पोलित ब्यूरो सदस्य (पीबीएम) द्वारा की गई है। पुलिस ने इस बयान की प्रामाणिकता की जांच शुरू कर दी है। सीपीआई (माओवादी) के प्रवक्ता अभय के एक बयान में कहा गया है कि संगठन ने सशस्त्र संघर्ष को अस्थायी रूप से रोकने और सरकारों के साथ शांति वार्ता के लिए पहल करने का फैसला किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सोनू के नाम से जारी छह पन्नों के एक बयान में माओवादियों ने स्वीकार किया कि संगठन भारत की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में विफल रहा, जिसके कारण उन्हें अपने गढ़ों में भारी नुकसान हुआ। बयान में कहा गया है कि भारी बलिदानों के बावजूद, गलत नीतियों और दिशा सुधारने में असमर्थता ने देश भर में क्रांतिकारी आंदोलन को कमजोर किया।
बयान में एक माफी भी शामिल है, जिसमें कहा गया है, ‘हम अनावश्यक बलिदानों, आपके सामने आई परेशानियों और हमारी संकीर्ण नीतियों से हुए दर्द के लिए जिम्मेदारी लेते हैं। हम जनता से माफी मांगते हैं।’ एक अन्य हिस्से में लिखा है, ‘सशस्त्र संघर्ष को रोके बिना और अपनी गलतियों से सबक लिए बिना क्रांतिकारी आंदोलन को पुनर्जनन करना असंभव है।’ वरिष्ठ नेता ने दंडकारण्य, बिहार-झारखंड, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में आंदोलन के कमजोर होने और सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों से हुए भारी नुकसान को स्वीकार किया। बयान में कहा गया है कि जहां उनके मजबूत आधार थे, वहां भी वे समय रहते कमजोरियों को पहचानने में विफल रहे। माओवादियों ने इस रुकावट को पुनर्गठन के लिए जरूरी बताया है। बयान में कहा गया है, ‘कृपया समझें कि यह आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि एक जरूरी ठहराव है। केवल जन शक्ति के निर्माण और लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट करके ही हम संघर्ष को सही दिशा में ले जा सकते हैं।’ माओवादियों ने सरकार से सीधे तौर पर अपील की, जिसमें कहा गया है कि वे शांति वार्ता के लिए तैयार हैं। संगठन ने केंद्र से युद्धविराम की घोषणा करने और जंगलों में चल रही तलाशी कार्रवाइयों को रोकने का अनुरोध किया, ताकि ‘खून से सने जंगल शांति के जंगल बन सकें।’ संगठन ने बुद्धिजीवियों, अधिकार कार्यकर्ताओं, लेखकों और कलाकारों से बदली हुई परिस्थितियों को समझने और समर्थन देने की अपील की है। पार्टी ने राज्य और क्षेत्रीय समितियों, साथ ही जेल में बंद सदस्यों से युद्धविराम चरण के दौरान सुझाव भेजने को कहा है। छत्तीसगढ़ पुलिस के अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने प्रेस नोट पर ध्यान दिया है और वे इसकी प्रामाणिकता की जांच कर रहे हैं। माओवादी आंदोलन पिछले एक दशक में निरंतर अभियानों, विकास कार्यों और वरिष्ठ नेताओं के आत्मसमर्पण और मृत्यु के कारण काफी कमजोर हुआ है।






